भूमिका
आदिमानव की भाषा का विकास मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। हम जानते हैं, आदिकाल में भाषा का अभाव था। या हम यूँ कहें, प्रारंभिक रूप में संप्रेषण की प्रक्रिया केवल ध्वनियों और इशारों तक सीमित थी। यह संप्रेषण प्रणाली (एक दूसरे से बात करने का तरीका) आदिमानव के सामाजिक और मानसिक विकास की दिशा निर्धारित करती थी। मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं, अनुभवों और भावनाओं को साझा करने के लिए धीरे-धीरे एक विशेष भाषा का रूप लिया, जो केवल जीवित रहने के लिए आवश्यक नहीं थी, बल्कि समूह में सहयोग और समझदारी भी उत्पन्न करती थी।
इस लेख में हम आदिमानव की भाषा के प्रारंभिक रूप को समझने की कोशिश करेंगे और देखेंगे कि किस प्रकार उसने ध्वनियों, इशारों, और प्रतीकों का उपयोग कर अपनी सोच और सामाजिक जीवन में भाषा को जोड़ते हुए जीवन को आगे बढ़ाया―
आदिमानव और भाषा का रहस्य
आदिमानव की भाषा कैसी थी, हमारे लिए यह एक अत्यंत रोचक और रहस्यपूर्ण प्रश्न है। उस काल में कोई लिखित अभिलेख या ध्वनि की रिकॉर्डिंग तो थी नहीं, इसलिए हम केवल अनुमान और वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर ही इसकी कल्पना कर सकते हैं।
संप्रेषण की प्रारंभिक आवश्यकताएँ
जब आदिमानव जंगलों में जीवन यापन कर रहा था, तब भी उसे अपने समूह के अन्य सदस्यों से किसी न किसी रूप में संपर्क करना आवश्यक था। जैसे वर्तमान में कई पशु पक्षियों को जिस तरह से भोजन, सुरक्षा, और प्रजनन जैसी आवश्यकताओं के लिए अपने भावों को प्रेषित करने की आवश्यकता होती है, उसी तरह से आदिमानव को भी तत्समय एक-दूसरे से संवाद की आवश्यकता थी।
ध्वनि संकेतों की शुरुआत
हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि प्रारंभिक काल में आदि मानव संभवतः जानवरों की तरह विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ निकालकर भावनाओं और इरादों को प्रकट करता रहा होगा। जैसे― भय की स्थिति में तीव्र आवाज़, प्रसन्नता में धीमी ध्वनि आदि।
इशारों की भूमिका
जिस तरह आज वर्तमान में भी मनुष्य अपने शारीरिक अंगों जैसे― आँखों, हाथों आदि के माध्यम से दूसरों को अपनी भावनाओं को समझाने में सक्षम हो पता है, ठीक इसी तरह से उस काल में आदिमानव के अपने शारीरिक इशारे जैसे हाथ हिलाना, आँखों की दिशा दिखाना, अंगुली से संकेत देना आदि भी भाषा के पहले चरण रहे होंगे। इससे आदिमानव अपने विचार या चेतावनी आसानी से दूसरों तक पहुँचा सकता रहा होगा।
मुखाकृति की मुद्राएँ
जिस प्रकार आज भी मनुष्य के अपने चेहरे के हाव-भाव जैसे मुस्कान, क्रोध, आश्चर्य आदि भावनाओं को संप्रेषित करने के प्रमुख साधन हैं। इसी तरह आदिमानव के ऐसे ही अपने समूह में भावनात्मक तालमेल बनाने के साधन रहे होंगे।
समूहिक जीवन और संप्रेषण
जैसे-जैसे आदिमानव ने समूह में रहना सीखा, वैसे-वैसे संप्रेषण की आवश्यकता भी बढ़ती गई। समूह को एकजुट रखने, नेतृत्व स्वीकारने और शिकार की योजना बनाने में संवाद का महत्व बढ़ गया।
प्रतीकात्मक ध्वनियों का प्रारंभ
आदिमानव के द्वारा हाथ, आँखों और मुँह के इशारे के साथ-साथ अब धीरे-धीरे कुछ विशेष ध्वनियाँ, कुछ निश्चित वस्तुओं या क्रियाओं के लिए प्रयुक्त होने लगी होंगी। उदाहरण के लिए, 'हूँ' का अर्थ भोजन, 'आह' का अर्थ खतरा आदि के लिए किया जाता रहा होगा।
अनुकृति और ध्वन्यात्मकता
प्रारंभ से ही मनुष्य की अनुकरण करने की प्रवृत्ति रही है। अतः भाषा के क्षेत्र में भी आदिमानव के द्वारा प्राकृतिक ध्वनियों की नकल से भी भाषा के बीज अंकुरित हुए। जैसे झरने की धारा, पशुओं की आवाज़ आदि की नकल कर आदि मानव ने संप्रेषण के नए तरीके खोजे।
शिकार और ध्वनि-संकेत
जीवित प्राणियों के जीवन का एक अहम हिस्सा होता है भूख! आदिमानव को भी अपनी भूख को मिटाने के लिए जंतुओं के शिकार की आवश्यकता पड़ी होगी। शिकार के समय विशेष प्रकार की ध्वनियाँ और इशारे प्रयोग में लाए जाते रहे होंगे, जो पूरी योजना और आपसी तालमेल का प्रतीक बनते गए।
मातृत्व और भाषा का विकास
जिस प्रकार आज भी एक नवजात शिशु की भावनाओं को माता समझ जाती है। ठीक इसी तरह आदिम युग में भी माता और शिशु के बीच का संवाद भाषा के विकास का एक महत्वपूर्ण आधार बना। कोमल ध्वनियों, स्पर्श और नेत्र-संपर्क से यह संपर्क गहरा हुआ।
ध्वनि का सामाजिक प्रयोग
जिस समय आदिमानव कुछ विकसित होकर सामाजिक रूप से संगठित होने लगा उस समय समाज में जब कार्य विभाजन आरंभ हुआ, तब विभिन्न कार्यों से संबंधित संकेतों और ध्वनियों की आवश्यकता हुई, जिससे व्यावसायिक संप्रेषण प्रारंभ हुआ।
अनुकरण और सीखने की प्रवृत्ति
मानव में आदिकाल से ही अनुकरण करने की अद्भुत क्षमता थी इसीलिए आज इतना विकसित हो पाया है। अतः हम यह मानते हैं कि आदिमानव में नकल की अद्भुत क्षमता थी। उसने अपने साथियों की ध्वनियों, संकेतों और इशारों की नकल कर उन्हें सीखना शुरू किया।
संकेतों का व्यवस्थित उपयोग
समय बीतता गया और आदिमानव संगठित होता गया। इस तरह समय के साथ कुछ संकेत मानकीकृत हो गए और सबके लिए समान अर्थ रखने लगे। यह भाषा के व्यवस्थित रूप की ओर पहला कदम था।
स्मृति और अनुभव
ईश्वर ने सभी प्राणियों में स्मृति प्रदान की है, किंतु मनुष्य को सर्वाधिक स्मृति का वरदान दिया है। इस तरह आदिमानव अपने पूर्व अनुभवों को साझा करने की इच्छा ने भी भाषा को जन्म दिया। अनुभवों को शब्दों या संकेतों के माध्यम से प्रकट किया जाने लगा।
चेतना और सोच
मानव विकास क्रम में जैसे-जैसे मस्तिष्क की चेतना विकसित हुई, सोचने और उसे प्रकट करने की इच्छा प्रबल होती गई और आदिमानव की यही इच्छा भाषा के निर्माण में सहायक बनी।
अनौपचारिक संवाद
समय के साथ मनुष्य जीवन और अधिक परिष्कृत होता गया। आरंभ में आदिमानव का संवाद केवल आवश्यकताओं तक सीमित था, परंतु धीरे-धीरे अनौपचारिक बातचीत, मनोरंजन और भावनात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी बनने लगा।
सांस्कृतिक विकास और भाषा
जब मनुष्य सामाजिक जीवन जीने लगा तब उसे अपने भोजन के साथ-साथ अपनी कला एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की आवश्यकता पड़ी। उसके नृत्य, चित्रकला, संगीत आदि सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी संप्रेषण के माध्यम बने और उन्होंने भाषा के विकास को नई दिशा दी। आज भी हम मध्य प्रदेश के भीमबेटका में आदिमानव की चित्रकला के उधर देख सकते हैं।
अग्नि और संप्रेषण
मानव की भाषा विकास में आग का उपयोग जानना एक अगला कदम था। अग्नि के उपयोग के साथ रात्रिकालीन संवाद की परंपरा भी आरंभ हुई, जहाँ समूह बैठकर मनुष्य अनुभव बाँटता रहा, जिससे भाषा में स्थायित्व और विस्तार आया।
ध्वनि से शब्दों की ओर
आदिमानव ने प्रारंभ में संप्रेषण के लिए ध्वनि संकेत का ही प्रयोग किया था किंतु धीरे-धीरे यह ध्वनि संकेत शब्दों में परिवर्तित होने लगे थे। कुछ ध्वनियाँ विशेष वस्तुओं या भावों के प्रतीक बन गईं और धीरे-धीरे भाषा बनने लगी।
भाषा का सामाजिक रूप
अंततः भाषा विकास क्रम में हम पाते हैं कि आगे चलकर आदिमानव की यह संवाद प्रणाली इतनी विकसित हो गई कि वह सामाजिक व्यवहार और परंपराओं का आधार बन गई। इस तरह यही प्रारंभिक भाषा आने वाली भाषाओं की जननी बनी।
उपसंहार
आदिमानव की भाषा, जो प्रारंभिक ध्वनियों और इशारों से शुरू होकर, सामाजिक और मानसिक विकास की प्रक्रिया का हिस्सा बनी, वह मानव इतिहास के एक अहम अध्याय के रूप में उभर कर आई। प्रारंभ में भाषा केवल आवश्यकताओं और सुरक्षा तक सीमित रही, लेकिन समय के साथ इसमें न केवल संवाद की प्रक्रिया विकसित हुई, बल्कि संस्कृति, कला और समाज की नींव भी पड़ी। इस प्रकार, आदि मानव की संप्रेषण प्रणाली ने मानवीय चेतना और सामाजिक संबंधों को आकार दिया, जो आज के जटिल और विविधतापूर्ण भाषाई रूपों का आधार बनी। आदिमानव की भाषा की शुरुआत केवल संप्रेषण का साधन नहीं थी, बल्कि यह मानवता के विकास की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था।
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