परिचय
(भाषाओं के वास्तविक स्वरूप से हमारा क्या आशय है?)
भाषाओं के वास्तविक स्वरूप से हमारा आशय निश्चित अर्थ देने वाली, चिह्नात्मक (symbolic), व्याकरणात्मक (syntax) और पुनरागम्यता (recursion) वाली भाषा, अर्थात वह संपूर्ण, जटिल मानव भाषा जिसकी मदद से विचारों का निरूपण, कथन, प्रश्न, तर्क, कथा-कहानी और सांस्कृतिक ज्ञान संचरित होता है।
भाषा का उद्भव एकाएक नहीं हुआ बल्कि इसका विकास एक जटिल, बहु-आयामी प्रक्रिया रही है। जैविक बदलाव, मानव मस्तिष्क की क्षमताओं का विकास, सामाजिक संरचनाओं और सांस्कृतिक प्रथाओं के साथ भाषाएं धीरे धीरे विकसित हुई।
1. पुरातात्विक प्रमाण
(भाषा के उद्भव के प्रमाण (Evidence) हम किस पर विश्वास करते हैं?)
भाषा के उद्भव का प्रत्यक्ष पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिलता (ध्वनि स्वतः बची नहीं रहती), इसलिए विद्वान विभिन्न प्रकार के अप्रत्यक्ष प्रमाणों को मिलाकर निष्कर्ष बनाते हैं ―
(अ) आनुवंशिक प्रमाण (Genetic evidence) — वैज्ञानिकों एवं भाषा विदों के द्वारा FOXP2 जीन के परिवर्तन जो भाषात्मक क्षमता से जुड़े बताया जाता है।
(आ) अनुवांशिक― विकास और शारीरिक (Anatomical) संकेत— ह्योइड हाड (hyoid bone), मुख-गला (vocal tract) और मणि-हड्डी संरचना जो भाषा-उत्पादन के लिए अनुकूल हों।
(इ) पुरातात्विक/सांस्कृतिक संकेत (Archaeological evidence) — प्रतीकात्मक वस्तुएँ (गहने, अंकन), गुफा चित्र, मृत्यु-विधि (ritual burials) इत्यादि जो ज्ञानात्मक और सांस्कृतिक जटिलता दर्शाते हैं।
(ई) तुलनात्मक अध्ययन (Comparative studies) — अन्य प्राइमेट्स और जीवों से तुलना, तथा आधुनिक मानवों में न्यूरोवैज्ञानिक अध्ययन।
(उ) भाषाविज्ञान (Comparative linguistics) — भाषाओं के परिवारों का पुनर्निर्माण (reconstruction) जो विभाजन-काल बताता है।इन स्रोतों को मिलाकर ही भाषा के 'कब' और 'कैसे' के अनुमान बनते हैं और ये अनुमान निश्चित (absolute) नहीं बल्कि सम्भाव्य (probabilistic) होते हैं।
2. जैविक आधार
(कब मनुष्य शारीरिक रूप से बोलने के काबिल हुए?)
आधुनिक मानव शारीरिक रूप (anatomically modern Homo sapiens) के निशान फ़ॉसिल रिकॉर्ड में लगभग ३००,०००–२००,००० वर्ष पहले मिलते हैं। यह वह चरण है जब मनुष्य का दिमाग और स्वरयन्त्र (vocal apparatus) आज के समान विकसित होने लगे।
ह्योइड हड्डी और वocal tract की संरचनाएँ बोलने के लिए अनुकूल मानी जाती हैं, कुछ निएंडरथल फॉसिलों (जैसे केबरा ह्योइड) में भी ऐसी संरचनाएँ पाई गईं, जिससे शायद निएंडरथल में भी बोली की क्षमता थी।
जीन FOXP2 का एक रूप आधुनिक मानव और निएंडरथल दोनों में पाया गया है, यह संकेत देता है कि भाषण-संबंधी बुनियादी आनुवंशिक क्षमता हमारी प्रजातियों और उनके नज़दीकी संबंधियों में काफी पुरानी हो सकती है। किन्तु FOXP2 केवल एक आवश्यक परंतु पर्याप्त नहीं, अर्थात यह बताता है कि भाषा संभव है, पर यह बताने के लिए अपर्याप्त है कि भाषा किस स्तर की और कब पूरी तरह मौजूद थी।
3. सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक प्रमाण
(सोच और भाषा कब जटिल हुए?)
भाषा के "वास्तविक स्वरूप" का एक मजबूत संकेत उस समय मिलता है जब मनुष्य प्रतीकात्मक व्यवहार दिखाने लगे अर्थात वस्तुओं पर जानबूझकर अंकन करना, गहने बनाना, चित्र बनाना, और शाब्दिक-साझा कहानियाँ/कथानक का विकास।
ऐसे प्रमाणों के कुछ प्रमुख बिन्दु ― पहले प्रतीकात्मक संकेत – अफ्रीका में दक्षिणी तट (जैसे ब्लोम्बोस गुफा) तथा अन्य स्थानों से लगभग ७५,०००–१००,००० वर्ष से भी पुराने संरक्षित ऑच्र (ochre) पर अंकन, मोती-गहने के शिलालेख आदि मिले हैं। इनका अर्थ प्रतीकात्मक सोच की उपस्थिति से लगाया जाता है।
गुफा चित्रकला और शिलालेख – दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप में गुफा चित्र लगभग ४५,००० वर्ष पहले तक डेट किए गए हैं। ये जटिल प्रतीकात्मक संस्कृति के संकेत हैं और भाषा-समान सामाजिक संरचना का समर्थन करते हैं।
नेएंडरथल प्रतीकात्मकता, निएंडरथल सहित कुछ अन्य प्रजातियों के सांस्कृतिक-निशान (ornaments, पेंटिंग संकेत) मिलते हैं, जिसका अर्थ है कि प्रतीकात्मक व्यवहार और संभवतः जटिल संवाद उनकी भी क्षमता में रहा होगा।
ये प्रमाण यह सुझाते हैं कि सोचने और प्रतीक को साझा करने की क्षमता जो भाषा की नींव है कम-से-कम १००,०००–५०,००,००० वर्ष पहले से आंशिक रूप से मौजूद थी, और ५०,००० वर्ष के आसपास इसकी तीव्रता (behavioral/cultural explosion) देखी जाती है।
4. भाषावैज्ञानिक मॉडल
(भाषा अचानक आई या धीरे-धीरे विकसित हुई?)
शोधकर्ता दो मुख्य प्रवृत्तियाँ दिखाते हैं ―
Gradualist (धीरे-धीरे) भाषा कई चरणों में विकसित हुई। संकेत/हाव-भाव → सिम्पल ध्वनि संकेत (protolanguage) → सीमित शब्द-वाक्य संयोजन → पूर्ण व्याकरण और रिकर्शन।
इसको समर्थन देते पुरातत्व और जैविक प्रमाण हैं क्योंकि वे क्रमिक बदलाव दिखाते हैं।
Saltationist / Punctuated (अचानक परिवर्तन) — कुछ विद्वान (जैसे कुछ भाषाविद व गौण जीवविज्ञानियों की परिकल्पना) मानते हैं कि किसी मस्तिष्क-सम्बन्धी परिवर्तन (जैसे एक आनुवंशिक बदलाव) ने भाषा को अपेक्षाकृत शीघ्र रूप से पूर्ण-व्याकरण तक पहुंचाया। नोम चॉम्स्की और कुछ सिद्धान्तकारों ने रिकर्शन जैसे गुणों को "क्वालिटेटिव" बदलाव मानकर ऐसे सुझाव दिये हैं। वास्तविकता संभवत: इन दोनों का मिश्रण है। जैविक क्षमताएँ धीरे-धीरे आईं, पर किसी बिंदु पर सामाजिक/सांस्कृतिक परिस्थितियों ने तीव्र विकास को प्रोत्साहित किया।
5. समय काल Timeline
प्रमुख माइलस्टोन (सारांश)
● 300,000 वर्ष पहले – प्रारम्भिक आधुनिक मानवशरीर के लक्षण; संभावित भाषण-क्षमता की आधारशिला।
● 200,000–100,000 वर्ष पहले ―आनुवंशिक और शारीरिक अनुकूलन; धीरे-धीरे जटिल औजार और सामाजिक संगठन।
● 100,000–50,000 वर्ष पहले ― प्रतीकात्मक वस्तुओं और शुरुआती कला के प्रमाण भाषा के जटिल रूप के लिए मजबूत संकेत।
● 50,000 वर्ष पहले: "Behavioral Modernity" — तेज़ सांस्कृतिक विविधकरण, भाषाई जटिलता की सम्भावना।
● 5,000–3,000 वर्ष ईसा पूर्व ― लिखित भाषा का आविष्कार (मेसोपोटामिया में क्यूनीफॉर्म, मिस्र में हाइरोग्लिफ्स) भाषाओं का पहला लिखित दस्तावेज़ीकरण।
6. निष्कर्ष
("वास्तविक स्वरूप" कब आया?)
कठोर रूप से कहें तो भाषा का 'वास्तविक स्वरूप' अर्थात व्याकरणिक, प्रतीकात्मक और समाज में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाली भाषा का ठोस अस्तित्व संभवतः कम-से-कम ५०,००० साल पहले तक पहुँच चुका था। किन्तु भाषा के घटक (शारीरिक क्षमता, प्रतीकात्मक सोच, संक्षिप्त संवाद प्रणालियाँ) उससे बहुत पहले, सैकड़ों हजार वर्ष पहले से विकसित हो रहे थे। इसलिए बेहतर कथन यह होगा। भाषा का विकास एक दीर्घ, चरणबद्ध प्रक्रिया थी, पर जहाँ तक 'वास्तविक' जटिल भाषा (वर्तमान मानव भाषा के समान) की बात है। उसके स्पष्ट, मजबूत प्रमाण लगभग ५०,००० वर्ष पूर्व के आसपास दिखाई देते हैं, जबकि आवश्यक जैविक व संज्ञानात्मक आधार उससे पहले कई दशक, सदियों में बन चुका था।
7. खुला प्रश्न और शोध के लिए दिशाएँ
भाषा का उद्भव आज भी जीवंत शोध का क्षेत्र है — नई पुरातात्विक खोजें, प्राचीन DNA अध्ययन, मस्तिष्क-इमेजिंग और कम्प्यूटेशनल मॉडल निरन्तर हमारे ज्ञान को परिष्कृत कर रहे हैं। कुछ प्रमुख खुले प्रश्न हैं: कब रिकर्शन उभरा? क्या निएंडरथलों में पूर्ण व्याकरण था? भाषा का विकास किस हद तक आनुवंशिक बनाम सांस्कृतिक है?
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