जैविक विकास और भाषा का संबंध

परिचय

भाषा मानव समाज की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है। यह केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं, बल्कि सोचने, समझने, और अनुभव साझा करने का एक उपकरण भी है। भाषा की उत्पत्ति और विकास का संबंध न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रियाओं से है, बल्कि यह गहराई से जैविक और शारीरिक विकास से भी जुड़ा है। विशेषतः मस्तिष्क की संरचना, स्वरयंत्र, होंठ, दाँत, मसूड़े, तालू, मूर्द्धा और जीभ जैसे अंगों का विकास भाषा के विकास में निर्णायक भूमिका निभाता है।

मानव शरीर की संरचना और भाषा का विकास

मानव शरीर की जैविक बनावट ने भाषा के विकास की दिशा में कई क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं। विशेषतः मस्तिष्क, स्वरयंत्र, होंठ, दाँत, मसूड़े और जीभ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। मस्तिष्क मानव भाषा का नियंत्रण केंद्र है। यह न केवल भाषा उत्पन्न करता है, बल्कि उसके अर्थ को समझने, व्याकरणिक रूप से सही प्रयोग करने और उसे सुनकर ग्रहण करने में सहायता करता है। स्वरयंत्र वह भाग है जहाँ से ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं। मनुष्य का स्वरयंत्र अन्य जीवों से तुलना करें तो नीचे स्थित होता है, जिससे उसे ध्वनि विविधता उत्पन्न करने की क्षमता प्राप्त होती है। ओंठ और जीभ ध्वनियों को स्पष्ट रूप देने में सहायक होते हैं। यह ध्वनियों के उच्चारण को नियंत्रित करते हैं और विभिन्न भाषाओं में ध्वनियों की विविधता को संभव बनाते हैं।

ब्रोकाज़ क्षेत्र (Broca’s Area)

सबसे पहले तो ब्रोकाज़ (Broca’s) शब्द के बारे जान लेना आवश्यक है। यह क्षेत्र मस्तिष्क के अग्र भाग (ललाट/ माथा वाला खंड) में स्थित होता है। इसका नाम उस वैज्ञानिक ब्रोकाज़ के नाम पर पड़ा है जिसने इसकी खोज की थी। मस्तिष्क में स्थित इस विशेष भाग को ब्रोकाज़ क्षेत्र (Broca’s Area) कहा जाता है जो वाक्य-निर्माण की प्रक्रिया में सहायता करता है। यह क्षेत्र बोलने की योजना बनाता है, वाक्य की संरचना करता है और व्याकरण के नियमों को व्यवस्थित करता है। जब इस क्षेत्र में क्षति होती है, तो व्यक्ति को बोलने में कठिनाई होती है, इसे ब्रोकाज़ वाक्-अस्वस्थता (Broca’s Aphasia) कहा जाता है। इस दशा में व्यक्ति सोच तो सकता है लेकिन उसे स्पष्टता से बोल नहीं पाता।

वर्निके क्षेत्र (Wernicke’s Area)

वर्निके क्षेत्र का नाम Carl Wernicke (1848–1905), एक जर्मन न्यूरोलॉजिस्ट के नाम पर रखा गया है। उन्होंने सबसे पहले 1874 में इस क्षेत्र की पहचान की और पाया कि इसका नुकसान भाषा की समझ को प्रभावित करता है। Carl Wernicke ने पहली बार इस मस्तिष्क क्षेत्र की पहचान की थी जो भाषा की समझ (language comprehension) से संबंधित है। यह क्षेत्र (Wernicke’s Area) मस्तिष्क के पार्श्व भाग (कर्ण-खंड) में स्थित होता है। यह भाषा की समझ और अर्थ ग्रहण करने के लिए उत्तरदायी होता है। यह क्षेत्र शब्दों का अर्थ समझने, सुनी या पढ़ी गई भाषा की व्याख्या करने तथा वाक्यों में प्रयुक्त शब्दों के बीच संबंध को समझने में सहायता करता है। इस क्षेत्र में क्षति होने पर व्यक्ति को वर्निके वाक्-अस्वस्थता (Wernicke’s Aphasia) हो सकती है, जिसमें वह शब्दों को सही तरीके से समझ नहीं पाता और असंबद्ध वाक्य बोलने लगता है।

मस्तिष्क का क्रमिक विकास और भाषा

मानव मस्तिष्क का क्रमिक विकास भाषा विकास के लिए आधारभूत रहा है। जैसे-जैसे मस्तिष्क के विशेष क्षेत्र विकसित हुए, वैसे-वैसे मनुष्य की भाषा संबंधी क्षमताओं में वृद्धि हुई। अन्य जीवों की तुलना में मनुष्य का मस्तिष्क अधिक जटिल और संगठित होता है, जिससे वह न केवल भाषा का निर्माण कर सकता है, बल्कि उसे विविध रूपों में प्रयोग भी कर सकता है। शुरुआत में मनुष्य ने रोने, चिल्लाने जैसी ध्वनियों का प्रयोग किया होगा, फिर उसने ध्वनियों का अनुकरण करना सीखा होगा, प्रतीकों का प्रयोग किया होगा, और व्याकरण एवं संरचना विकसित की होगी। आगे चलकर अंत में लेखन और भाषाई प्रतीकों का विकास हुआ।

भाषा और समाज

मानव के समाज रहने से संप्रेषण तकनीक की उन्नति हुई और समय के साथ भाषा विकास ने मानव समाज को एक नई दिशा दी। इसके माध्यम से ज्ञान का संचरण, संस्कृति का विकास, और धर्म, विज्ञान तथा दर्शन की नींव पड़ी।

अन्य प्राणी और भाषा

चिंपांजी और अन्य वानर जातियाँ भी कुछ हद तक संकेतों और ध्वनियों का प्रयोग करती हैं, लेकिन उनका मस्तिष्क मानव मस्तिष्क जितना विकसित नहीं होता। इसका कारण है कि उनके पास न ब्रोकाज़ क्षेत्र होता है और न ही वर्निके क्षेत्र की जटिलता। इसलिए भाषा का संपूर्ण विकास केवल मनुष्य में ही संभव हो सका।

निष्कर्ष

जैविक विकास और भाषा का संबंध गहराई से जुड़ा हुआ है। मानव शरीर की संरचना, विशेषकर मस्तिष्क, स्वरयंत्र, होंठ, दाँत, मसूड़े और जीभ का विकास भाषा की उत्पत्ति में निर्णायक रहा है। ब्रोकाज़ क्षेत्र और वर्निके क्षेत्र जैसे मस्तिष्कीय क्षेत्रों के कारण ही मनुष्य भाषा को न केवल अपने प्रयोग में ला सका, बल्कि उसे निरन्तर विकसित भी करता रहा। यही भाषा मानव को 'मनुष्य' बनाती है और उसे समाज, संस्कृति, और सभ्यता से जोड़ती है। यह लेख भाषाई विकास के ज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कड़ी है।