पाठ 1 'सिल्वर वैडिंग (मनोहर श्याम जोशी)' 12th हिंदी (वितान भाग 2 गद्य खंड) || पाठ का सारांश एवं संपूर्ण अभ्यास (प्रश्न उत्तर)

संपूर्ण पाठ -

जब ब सेक्शन आफ़िसर वाई.डी. (यशोधर) पंत ने आखिरी फ़ाइल का लाल फीता बाँधकर निगाह मेज़ से उठाई तब दफ्तर की पुरानी दीवार घड़ी पाँच बजकर पच्चीस मिनट बजा रही थी। उनकी अपनी कलाई घड़ी में साढ़े पाँच बज रहे थे। पंतजी अपनी घड़ी रोजाना सुबह-शाम रेडियो समाचारों से मिलाते हैं इसलिए उन्होंने दफ्तर की घड़ी को ही सुस्त ठहराया। फ़ाइल आउट ट्रे में डालकर उन्होंने एक निगाह अपने मातहतों पर डाली जो उनके ही कारण पाँच बजे के बाद भी दफ्तर में बैठने को मजबूर होते हैं। चलते-चलते जूनियरों से कोई मनोरंजक बात कर दिन भर के शुष्क व्यवहार का निराकरण कर जाने की कृष्णानंद (किशनदा) पांडे से मिली हुई परंपरा का पालन करते हुए उन्होंने कहा, "आप लोगों की देखादेखी सेक्शन की घड़ी भी सुस्त हो गई है!"

सीधे 'असिस्टेंट ग्रेड' में आए नए छोकरे चड्डा ने, जिसकी चौड़ी मोहरीवाली पतलून और ऊँची एड़ी वाले जूते पंतजी को, 'सम हाउ इंप्रापर' मालूम होते हैं, थोड़ी बदतमीज़ी-सी की। 'ऐज यूजुअल' बोला, "बड़े बाऊ, आपकी अपनी चूनेदानी का क्या हाल है? वक्त सही देती है?"

पंतजी ने चड्डा की धृष्टता को अनदेखा किया और कहा, "मिनिट-टू-मिनिट करेक्ट चलती है।"

चड्डा ने कुछ और धृष्ट होकर पंतजी की कलाई थाम ली। इस तरह की धृष्टता का प्रकट विरोध करना यशोधर बाबू ने छोड़ दिया है। मन-ही-मन वह उस जमाने की याद जरूर करते हैं जब दफ्तर में वह किशनदा को भाई नहीं 'साहब' कहते और समझते थे। घड़ी की ओर देखकर वह बोला, "बाबा आदम के ज़माने की है बड़े बाऊ यह तो ! अब तो डिजिटल ले लो एक जापानी। सस्ती मिल जाती है।"

"यह घड़ी मुझे शादी में मिली थी। हम पुरानी चाल के, हमारी घड़ी पुरानी चाल की। अरे यही बहुत है कि अब तक 'राईट टाईम' चल रही है क्यों कैसी रही?"

इस तरह का नहले पर दहला जवाब देते हुए एक हाथ आगे बढ़ा देने की परंपरा थी, रेम्जे स्कूल, अल्मोड़ा में जहाँ से कभी यशोधर बाबू ने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इस तरह के आगे बढ़े हुए हाथ पर सुनने वाला बतौर दाद अपना हाथ मारा करता था और वक्ता श्रोता दोनों ठठाकर हाथ मिलाया करते थे। ऐसी ही परंपरा किशनदा के क्वार्टर में भी थी जहाँ रोजी-रोटी की तलाश में आए यशोधर पंत नामक एक मैट्रिक पास बालक को शरण मिली थी कभी। किशनदा कुँआरे थे और पहाड़ से आए हुए कितने ही लड़के ठीक-ठिकाना होने से पहले उनके यहाँ रह जाते थे। मैस जैसी थी। मिलकर लाओ, पकाओ, खाओ। यशोधर बाबू जिस समय दिल्ली आए थे उनकी उम्र सरकारी नौकरी के लिए कम थी। कोशिश करने पर भी 'बॉय सर्विस' में वह नहीं लगाए जा सके। तब किशनदा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। यही नहीं, उन्होंने यशोधर को पचास रुपये उधार भी दिए कि वह अपने लिए कपड़े बनवा सके और गाँव पैसा भेज सके। बाद में इन्हीं किशनदा ने अपने ही नीचे नौकरी दिलवाई और दफ्तरी जीवन में मार्ग-दर्शन किया।

चड्डा ने जोर से कहा, "बड़े बाऊ, आप किन खयालों में खो गए? मेनन पूछ रहा है कि आपकी शादी हुई कब थी?"

यशोधर बाबू ने सकपकाकर अपना बढ़ा हुआ हाथ वापस खींचा और मेनन से मुखातिब होकर बोले, "नाव लैट मी सी, आई वॉज़ मैरिड ऑन सिक्स्थ फ़रवरी नाइंटिन फ़ोर्टी सेवन।"

मेनन ने फ़ौरन हिसाब लगाया और चहककर बोला, "मैनी हैप्पी रिटन्र्स आफ़ द डे सर! आज तो आपका 'सिल्वर वैडिंग' है। शादी को पूरा पच्चीस साल हो गया।"

यशोधर जी खुश होते हुए झेंपे और झेंपते हुए खुश हुए। यह अदा उन्होंने किशनदा से सीखी थी।

चड्डा ने घंटी बजाकर चपरासी को बुलाया और कहा, "सुन भई भगवानदास, बड़े बाऊ से बड़ा नोट ले और सारे सेक्शन के लिए चा-पानी का इंतज़ाम कर फटाफट।"

यशोधर जी बोले, "अरे ये 'वैडिंग एनिवर्सरी' वगैरह सब गोरे साहबों के चोंचले हैं-हमारे यहाँ थोड़ी मानते हैं।"

चड्डा बोला, "मिक्चर मत पिलाइए गुरुदेव। चाय-मट्ठी-लड्डू बस इतना ही तो सौदा है। इनमें कौन आपकी बड़ी माया निकली जानी है।"

यशोधर बाबू ने जेब से बटुआ और बटुए में से दस का नोट निकाला और कहा, "आप लोग चाय पीजिए, 'दैट' तो 'आई डू नाट माइंड', लेकिन जो हमारे लोगों में 'कस्टम' नहीं है, उस पर 'इनसिस्ट' करना, 'दैट' मैं 'समहाउ इंप्रॉपर फ़ाइंड' करता हूँ।"

चड्डा ने दस का नोट चपरासी को दिया और पुनः बड़े बाऊ के आगे हाथ फैला दिया कि एक नोट से सेक्शन का क्या बनता है? रुपये तीस हों तो चुग्गे भर का जुगाड़ करा सकें।

सारा सेक्शन जानता है कि यशोधर बाबू अपने बटुए में सौ-डेढ़ सौ रुपये हमेशा रखते हैं भले ही उनका दैनिक खर्च नगण्य है। और तो और, बस टिकट का खर्च भी नहीं। गोल मार्केट से 'सेक्रेट्रिएट' तक पहले साइकिल में आते-जाते थे, इधर पैदल आने-जाने लगे हैं क्योंकि उनके बच्चे आधुनिक युवा हो चले हैं और उन्हें अपने पिता का साइकिल सवार होना सख्त नागवार गुज़रता है। बच्चों के अनुसार साइकिल तो चपरासी चलाते हैं। बच्चे चाहते हैं कि पिताजी स्कूटर ले लें। लेकिन पिताजी को 'समहाउ' स्कूटर निहायत बेहूदा सवारी मालूम होती है और कार जब 'अफ़ोर्ड' की नहीं जा सकती तब उसकी बात सोचना ही क्यों?

चड्डा के जोर देने पर बड़े बाऊ ने दस-दस के नोट दो और दे दिए लेकिन सारे सेक्शन के इसरार करने पर भी वह अपनी 'सिल्वर वैडिंग' की इस दावत के लिए रुके नहीं। मातहत लोगों से चलते-चलाते थोड़ा हँसी-मजाक कर लेना किशनदा की परंपरा में है। उनके साथ बैठकर चाय-पानी और गप्प गप्पाष्टक में वक्त बरबाद करना उस परंपरा के विरुद्ध है।

इधर यशोधर बाबू ने दफ्तर से लौटते हुए रोज बिड़ला मंदिर जाने और उसके उद्यान में बैठकर कोई प्रवचन सुनने अथवा स्वयं ही प्रभु का ध्यान लगाने की नयी रीत अपनाई है।

यह बात उनके पत्नी-बच्चों को बहुत अखरती है। बब्बा, आप कोई बुड्ढे थोड़ी हैं जो रोज-रोज मंदिर जाएँ, इतने ज्यादा व्रत करें-ऐसा कहते हैं वे। यशोधर बाबू इस आलोचना को अनसुना कर देते हैं। सिद्धांत के धनी की, किशनदा के अनुसार, यही निशानी है!

बिड़ला मंदिर से उठकर यशोधर बाबू पहाड़गंज जाते हैं और घर के लिए साग-सब्ज़ी खरीद लाते हैं। किसी से मिलना-मिलाना हो तो वह भी इसी समय कर लेते हैं। तो भले ही दफ्तर पाँच बजे छूटता हो वह घर आठ बजे से पहले नहीं पहुँचते।

आज बिड़ला मंदिर जाते हुए यशोधर बाबू की निगाह उस अहाते पर पड़ी जिसमें कभी किशनदा का तीन बैडरूम वाला क्वार्टर हुआ करता था और जिस पर इन दिनों एक छह मंजिला इमारत बनाई जा रही है। इधर से गुजरते हुए कभी के 'डी.आई. जैड.' एरिया की बदलती शक्ल देखकर यशोधर बाबू को बुरा-सा लगता है। ये लोग सारा गोल मार्केट क्षेत्र तोड़कर यहाँ एक मंजिला क्वार्टरों की जगह ऊँची इमारतें बना रहे हैं। यशोधर बाबू को पता नहीं कि वे लोग ठीक कर रहे हैं कि गलत कर रहे हैं। उन्हें यह जरूर पता है कि उनकी यादों के गोल मार्केट के ढहाए जाने का गम मनाने के लिए उनका इस क्षेत्र में डटे रहना निहायत जरूरी है। उन्हें एंड्रयूज़गंज, लक्ष्मीबाई नगर, पंडारा रोड आदि नयी बस्तियों में पद की गरिमा के अनुरूप डी 2 टाइप क्वार्टर मिलने की अच्छी खबर कई बार आई है मगर हर बार उन्होंने गोल मार्केट छोड़ने से इंकार कर दिया है। जब उनका क्वार्टर टूटने का नंबर आया तब भी उन्होंने इसी क्षेत्र की इन बस्तियों में बचे हुए क्वार्टरों में एक अपने नाम अलाट करा लिया। पत्नी के यह पूछने पर कि जब यह भी टूट जाएगा तब क्या करोगे? उन्होंने कहा- तब की तब देखी जाएगी। कहा और उसी तरह मुसकुराए जिस तरह किशनदा यही फ़िकरा कह कर मुसकुराते थे।

सच तो यह है कि पिछले कई वर्षों से यशोधर बाबू का अपनी पत्नी और बच्चों से हर छोटी-बड़ी बात में मतभेद होने लगा है और इसी वजह से वह घर जल्दी लौटना पसंद नहीं करते। जब तक बच्चे छोटे थे तब तक वह उनकी पढ़ाई-लिखाई में मदद कर सकते थे। अब बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी पा गया है। यद्यपि 'समहाउ' यशोधर बाबू को अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन देने वाली यह नौकरी कुछ समझ में आती नहीं।

वह कहते हैं कि डेढ़ हज़ार रुपया तो हमें अब रिटायरमेंट के पास पहुँच कर मिला है, शुरू में ही डेढ़ हजार रुपया देने वाली इस नौकरी में ज़रूर कुछ पेंच होगा। यशोधर जी का दूसरा बेटा दूसरी बार आई.ए.एस. देने की तैयारी कर रहा है और यशोधर बाबू के लिए यह समझ सकना असंभव है कि जब यह पिछले साल 'एलाइड सर्विसेज़' की सूची में, माना काफ़ी नीचे आ गया था, तब इसने 'ज्वाइन' करने से इंकार क्यों कर दिया? उनका तीसरा बेटा स्कालरशिप लेकर अमरीका चला गया है और उनकी एकमात्र बेटी न केवल तमाम प्रस्तावित वर अस्वीकार करती चली जा रही है बल्कि डाक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए स्वयं भी अमरीका चले जाने की धमकी दे रही है। यशोधर बाबू जहाँ बच्चों की इस तरक्की से खुश होते हैं वहाँ 'समहाउ' यह भी अनुभव करते हैं कि वह खुशहाली भी कैसी जो अपनों में परायापन पैदा करे। अपने बच्चों द्वारा गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा उन्हें 'समहाउ' जँचती नहीं। 'एनीवे- जेनरेशनों में गैप तो होता ही है सुना'- ऐसा कहकर स्वयं को दिलासा देता है पिता।

यद्यपि यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं है तथापि बच्चों की तरफ़दारी करने की मातृसुलभ मजबूरी ने उन्हें भी मॉड बना डाला है। कुछ यह भी है कि जिस समय उनकी शादी हुई थी यशोधर बाबू के साथ गाँव से आए ताऊजी और उनके दो विवाहित बेटे भी रहा करते थे। इस संयुक्त परिवार में पीछे ही पीछे बहुओं में गज़ब के तनाव थे लेकिन ताऊजी के डर से कोई कुछ कह नहीं पाता था। यशोधर बाबू की पत्नी को शिकायत है कि संयुक्त परिवार वाले उस दौर में पति ने हमारा पक्ष कभी नहीं लिया, बस जिठानियों की चलने दी। उनका यह भी कहना है कि मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी। जितने भी नियम इनकी बुढ़िया ताई के लिए थे, वे सब मुझ पर भी लागू करवाए ऐसा कहती है घरवाली बच्चों से। बच्चे उससे सहानुभूति व्यक्त करते हैं। फिर वह यशोधर जी से उन्मुख होकर कहती है-तुम्हारी ये बाबा आदम के ज़माने की बातें मेरे बच्चे नहीं मानते तो इसमें उनका कोई कसूर नहीं। मैं भी इन बातों को उसी हद तक मानूँगी जिस हद तक सुभीता हो। अब मेरे कहने से वह सब ढोंग ढकोसला हो नहीं सकता-साफ़ बात।

धर्म-कर्म, कुल-परंपरा सबको ढोंग-ढकोसला कहकर घरवाली आधुनिकाओं-सा आचरण करती है तो यशोधर बाबू 'शानयल बुढ़िया', 'चटाई का लँहगा' या 'बूढ़ी मुँह मुँहासे, लोग करें तमासे' कहकर उसके विद्रोह को मज़ाक में उड़ा देना चाहते हैं, अनदेखा कर देना चाहते हैं लेकिन यह स्वीकार करने को बाध्य भी हो जाते हैं कि तमाशा स्वयं उनका बन रहा है।

जिस जगह किशनदा का क्वार्टर था उसके सामने खड़े होकर एक गहरा निःश्वास छोड़ते हुए यशोधर जी ने अपने से पूछा कि क्या यह 'बैटर' नहीं रहता कि किशनदा की तरह, घर-गृहस्थी का बवाल ही न पाला होता और 'लाइफ़' कम्यूनिटी के लिए 'डेडीकेट' कर दी होती।

फिर उनका ध्यान इस ओर गया कि बाल-जती किशनदा का बुढ़ापा सुखी नहीं रहा। उसके तमाम साथियों ने हौजखास, ग्रीनपार्क, कैलाश कहीं-न-कहीं ज़मीन ली, मकान बनवाया, लेकिन उसने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। रिटायर होने के छह महीने बाद जब उसे क्वार्टर खाली करना पड़ा तब, हद हो गई, उसके द्वारा उपकृत इतने सारे लोगों में से एक ने भी उसे अपने यहाँ रखने की पेशकश नहीं की। स्वयं यशोधर बाबू उसके सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रख पाए क्योंकि उस समय तक उनकी शादी हो चुकी थी और उनके दो कमरों के क्वार्टर में तीन परिवार रहा करते थे। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क्वार्टर लेकर रहा और फिर अपने गाँव लौट गया जहाँ साल भर बाद उसकी मृत्यु हो गई। ज्यादा पेंशन खा नहीं सका बेचारा! विचित्र बात यह है कि उसे कोई भी बीमारी नहीं हुई। बस रिटायर होने के बाद मुरझाता सूखता ही चला गया। जब उसके एक बिरादर से मृत्यु का कारण पूछा तब उसने यशोधर बाबू को यही जवाब दिया, "जो हुआ होगा।" यानी 'पता नहीं, क्या हुआ।'

जिन लोगों के बाल-बच्चे नहीं होते, घर परिवार नहीं होता उनकी रिटायर होने के बाद 'जो हुआ होगा' से भी मौत हो जाती है- यह जानते हैं यशोधर जी! बच्चों का होना भी ज़रूरी है। यह सही है कि यशोधर जी के बच्चे मनमानी कर रहे हैं और ऐसा संकेत दे रहे हैं कि उनके कारण यशोधर जी को बुढ़ापे में कोई विशेष सुख प्राप्त नहीं होगा लेकिन यशोधर जी अपने मर्यादा पुरुष किशनदा से सुनी हुई यह बात नहीं भूले हैं कि गधा-पचीसी में कोई क्या करता है इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि बाद में हर आदमी समझदार हो जाता है। यद्यपि युवा यशोधर को विश्वास नहीं होता तथापि किशनदा बताते हैं कि किस तरह मैंने जवानी में पचासों किस्म की खुराफ़ात की है। ककड़ी चुराना, गर्दन मोड़ के मुर्गी मार देना, पीछे की खिड़की से कूद कर सेकेंड शो सिनेमा देख आना-कौन करम ऐसा है जो तुम्हारे इस किशनदा ने नहीं कर रखा।

ज़िम्मेदारी सर पर पड़ेगी तब सब अपने ही आप ठीक हो जाएँगे, यह भी किशनदा से विरासत में मिला हुआ एक फ़िकरा है जिसे यशोधर बाबू अकसर अपने बच्चों के प्रसंग में दोहराते हैं। उन्हें कभी-कभी लगता है कि अगर मेरे पिता तब नहीं गुज़र गए होते जब मैं मैट्रिक में था तो शायद मैं भी गधा-पचीसी के लंबे दौर से गुज़रता। ज़िम्मेदारी सर पर जल्दी पड़ गई तो जल्दी ही ज़िम्मेदार आदमी भी बन गया। जब तक बाप है तब तक मौज कर ले। यह बात यशोधर जी कभी-कभी तज़िया' कहते हैं। लेकिन कहते हुए उनके चेहरे पर जो मुसकान खेल जाती है वह बच्चों पर यह प्रकट करती है कि बाप को उनका सनाथ होना, गैर-ज़िम्मेदार होना, कुल मिलाकर अच्छा लगता है।

यशोधर बाबू कभी-कभी मन ही मन स्वीकार करते हैं कि दुनियादारी में बीवी-बच्चे उनके अधिक सुलझे हुए हो सकते हैं लेकिन दो के चार करने वाली दुनिया ही उन्हें कहाँ मंजूर है जो उसकी रीत मंजूर करें। दुनियादारी के हिसाब से बच्चों का यह कहना सही हो सकता है कि बब्बा ने डी.डी.ए. फ्लैट के लिए पैसा न भर के भयंकर भूल की है किंतु 'समहाउ' यशोधर बाबू को किशनदा की यह उक्ति अब भी जँचती है-मूरख लोग मकान बनाते हैं, सयाने उनमें रहते हैं। जब तक सरकारी नौकरी तब तक सरकारी क्वार्टर। रिटायर होने पर गाँव का पुश्तैनी घर। बस !

गाँव का पुश्तैनी घर टूट-फूट चुका है और उस पर इतने लोगों का हक है कि वहाँ जाकर बसना, मरम्मत की ज़िम्मेदारी ओढ़ना और बेकार के झगड़े मोल लेना होगा इस बात को यशोधर जी अच्छी तरह समझते हैं। बच्चे बहस में जब यह तर्क दोहराते हैं तब उनसे कोई जवाब देते नहीं बनता। उन्होंने हमेशा यही कल्पना की थी और आज भी करते हैं, कि उनका कोई लड़का रिटायर होने से पहले सरकारी नौकरी में आ जाएगा और क्वार्टर उनके परिवार के पास बना रह सकेगा। अब भी पत्नी द्वारा भविष्य का प्रश्न उठाए जाने पर यशोधर बाबू इस संभावना को रेखांकित कर देते हैं। जब पत्नी कहती है, 'अगर ऐसा नहीं हुआ तो? आदमी को तो हर तरह से सोचना चाहिए।' तब यशोधर बाबू टिप्पणी करते हैं कि सब तरह से सोचने वाले हमारी बिरादरी में नहीं होते हैं। उसमें तो एक की तरह से सोचने वाले होते हैं। कहते हैं और कहकर लगभग नकली-सी हँसी हँसते हैं।

जितना ही इस लोक की जिंदगी यशोधर बाबू को यह नकली हँसी हँसने के लिए बाध्य कर रही है उतना ही वह परलोक के बारे में उत्साही होने का यत्न कर रहे हैं। तो उन्होंने बिड़ला मंदिर की ओर तेज़ कदम बढ़ाए, लक्ष्मी-नारायण के आगे हाथ जोड़े, असीक का फूल' चुटिया में खोंसा और पीछे से उस प्रांगण में जा पहुँचे जहाँ एक महात्मा जी गीता पर प्रवचन कर रहे थे।

अफ़सोस, आज प्रवचन सुनने में यशोधर जी का मन खास लगा नहीं। सच तो यह है कि वह भीतर से बहुत ज़्यादा धार्मिक अथवा कर्मकांडी हैं नहीं। हाँ इस संबंध में अपने मर्यादा पुरुष किशनदा द्वारा स्थापित मानक हमेशा उनके सामने रहे हैं। जैसे-जैसे उम्र ढल रही है वैसे-वैसे वह भी किशनदा की तरह रोज़ मंदिर जाने, संध्या-पूजा करने और गीता प्रेस गोरखपुर की किताबें पढ़ने का यत्न करने लगे हैं। अगर कभी उनका मन शिकायत करता कि इस सब में लग नहीं पा रहा हूँ तब उससे कहते कि भाई लगना चाहिए। अब तो माया-मोह के साथ-साथ भगवत्-भजन को भी कुछ स्थान देना होगा कि नहीं? नयी पीढ़ी को देकर राजपाट तुम लग जाओ बाट वन-प्रदेश की। जो करते हैं, जैसा करते हैं, करें। हमें तो अब इस 'व-रल्ड' की नहीं, उसकी, इस 'लाइफ़' की नहीं, उसकी चिंता करनी है। वैसे अगर बच्चे सलाह माँगें, अनुभव का आदर करें तो अच्छा लगता है। अब नहीं माँगते तो न माँगें।

यशोधर बाबू ने फिर अपने को झिड़का कि यह भी क्या हुआ कि मन को समझाने में फिर भटक गए। गीता महिमा सुनो।

सुनने लगे मगर व्याख्या में जनार्दन शब्द जो सुनाई पड़ा तो उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद हो आई। परसों ही कार्ड आया है कि उनकी तबीयत खराब है। यशोधर बाबू सोचने लगे कि जीजाजी का हाल पूछने अहमदाबाद जाना ही होगा। ऐसा सोचते ही उन्हें यह भी खयाल आया कि यह प्रस्ताव उनकी पत्नी और बच्चों को पसंद नहीं आएगा, सारा संयुक्त परिवार बिखर गया है। पत्नी और बच्चों की धारणा है कि इस बिखरे परिवार के प्रति यशोधर जी का एकतरफ़ा लगाव आर्थिक दृष्टि से सर्वथा मूर्खतापूर्ण है। यशोधर जी खुशी-गम के हर मौके पर रिश्तेदारों के यहाँ जाना ज़रूरी समझते हैं। वह चाहते हैं कि बच्चे भी पारिवारिकता के प्रति उत्साही हों। बच्चे कुद्ध ही होते हैं। अभी उस दिन हद हो गई। कमाऊ बेटे ने यह कह दिया कि आपको बुआ को भेजने के लिए पैसे मैं तो नहीं दूँगा। यशोधर बाबू को कहना पड़ा कि अभी तुम्हारे बब्बा की इतनी साख है कि सौ रुपये उधार ले सकें।

यशोधर जी का नारा, 'हमारा तो सैप' ही ऐसा देखा ठहरा'- हमें तो यही परंपरा विरासत में मिली है। इस नारे से उनकी पत्नी बहुत चिढ़ती है। पत्नी का कहना है, और सही कहना है कि यशोधर जी का स्वयं का देखा हुआ कुछ नहीं है। माँ के मर जाने के बाद छोटी-सी उम्र में वह गाँव छोड़कर अपनी विधवा बुआ के पास अल्मोड़ा आ गए थे। बुआ का कोई ऐसा लंबा-चौड़ा परिवार तो था नहीं जहाँ कि यशोधर जी कुछ देखते और परंपरा के रंग में रंगते। मैट्रिक पास करते ही वह दिल्ली आ गए और यहाँ रहे कुँआरे कृष्णानंद जी के साथ। कुँआरे की गिरस्ती में देखने को होता क्या है? पत्नी आग्रहपूर्वक कहती है कि कुछ नहीं तुम अपने उन किशनदा के मुँह से सुनी-सुनाई बातों को अपनी आँखों देखी यादें बना डालते हो किशनदा को जो भी मालूम था। वह उनका पुराने गँवई लोगों से सीखा हुआ ठहरा। दिल्ली आकर उन्होंने घर-परिवार तो बसाया नहीं जो जान पाते कि कौन से रिवाज निभ सकते हैं. कौन से नहीं। पत्नी का कहना है कि किशनदा तो थे ही जनम के बूढ़े, तुम्हें क्या सुर लगा जो उनका बुढ़ापा खुद ओढ़ने लगे हो? तुम शुरू में तो ऐसे नहीं थे, शादी के बाद मैंने तुम्हें देख जो क्या नहीं रखा है! हफ्ते में दो-दो सिनेमा देखते थे, गज़ल गाते थे गज़ल ! गजल हुई और सहगल के गाने।

यशोधर बाबू स्वीकार करते हैं कि उनमें कुछ परिवर्तन हुआ है लेकिन वह समझते हैं कि उम्र के साथ-साथ बुजुर्गियत आना ठीक ही है। पत्नी से वह कहते हैं कि जिस तरह तुमने बुढ़याकाल यह बगैर बाँह का ब्लाउज पहनना, यह रसोई से बाहर दाल-भात खा लेना, यह ऊँची हील वाली सैंडल पहनना, और ऐसे ही पचासों काम अपनी बेटी की सलाह पर शुरू कर दिए हैं, मुझे तो वे 'समहाउ इंप्रॉपर' ही मालूम होते हैं। एनीवे मैं तुम्हें ऐसा करने से रोक नहीं रहा। देयरफोर तुम लोगों को भी मेरे जीने के ढंग पर कोई एतराज होना नहीं चाहिए।

यशोधर बाबू को धार्मिक प्रवचन सुनते हुए भी अपना पारिवारिक चिंतन में ध्यान डूबा रहना अच्छा नहीं लगा। सुबह-शाम संध्या करने के बाद जब वह थोड़ा ध्यान लगाने की कोशिश करते हैं तब भी मन किसी परम सत्ता में नहीं, इसी परिवार में लीन होता है। यशोधर जी चाहते हैं कि ध्यान लगाने की सही विधि सीखें तथा साथ ही वह अपने से भी कहते हैं कि परहैप्स ऐसी चीज़ के लिए रिटायर होने के बाद का समय ही प्रॉपर ठहरा। वानप्रस्थ के लिए प्रैसक्राइब्ड ठहरी ये चीजें। वानप्रस्थ के लिए यशोधर बाबू का अपने पुश्तैनी गाँव जाने का इरादा है रिटायर होकर। फार फ्राम द मैडिंग क्राउड-समझे !

इस तरह की तमाम बातें यशोधर बाबू पैदाइशी बुजुर्गवार किशनदा के शब्दों में और उनके ही लहजे में कहा करते हैं और कह कर उनकी तरह की वह झेंपी-सी लगभग नकली-सी हँसी हँस देते हैं। जब तक किशनदा दिल्ली में रहे यशोधर बाबू नित्य नियम से हर दूसरी शाम उनके दरबार में हाजिरी लगाने पहुँचते रहे।

स्वयं किशनदा हर सुबह सैर से लौटते हुए अपने इस मानस पुत्र के क्वार्टर में झाँकना और 'हैल्दी-वैल्दी एंड वाइज़' बन रहा है न भाऊ ऐसा कहना कभी नहीं भूलते। जब यशोधर बाबू दिल्ली आए थे तब उनकी सुबह थोड़ी देर से उठने की आदत थी। किशनदा ने उन्हें रोज सुबह झकझोर कर उठाना और साथ सैर में ले जाना शुरू किया और यह मंत्र दिया कि 'अरली टू बैड एंड अरली टू राइज मेक्स ए मैन हैल्दी एंड वाइज़ !' जब यशोधर बाबू अलग क्वार्टर में रहने लगे और अपनी गृहस्थी में डूब गए तब भी किशनदा ने यह देखते रहना जरूरी समझा कि भाऊ यानी बच्चा सवेरे जल्दी उठता है कि नहीं? यशोधर बाबू को यह अच्छा लगता था कि कोई उन्हें भाऊ कहता है। हर सवेरे वह किशनदा से अनुरोध करते कि चाय पीकर जाए। किशनदा कभी-कभी इस अनुरोध की रक्षा कर देते। यशोधर बाबू ने किशनदा को घर और दफ्तर में विभिन्न रूपों में देखा है लेकिन किशनदा की जो छवि उनके मन में बसी हुई है वह सुबह की सैर को निकले किशनदा की ही है, कुर्ते पजामे के ऊपर ऊनी गाउन पहने, सिर पर गोल विलायती टोपी और पाँवों में देशी खड़ाऊँ धारण किए हुए और हाथ में (कुत्तों को भगाने के लिए) एक छड़ी लिए हुए।

जब तक किशनदा दिल्ली में रहे तब तक यशोधर बाबू ने उनके पट्टशिष्य और उत्साही कार्यकर्ता की भूमिका पूरी निष्ठा से निभाई। किशनदा के चले जाने के बाद उन्होंने ही उनकी कई परंपराओं को जीवित रखने की कोशिश की और इस कोशिश में पत्नी और बच्चों को नाराज़ किया। घर में होली गवाना, 'जन्यो पुन्यू' के दिन सब कुमाउँनियों को जनेऊ बदलने के लिए अपने घर आमंत्रित करना, रामलीला की तालीम के लिए क्वार्टर का एक कमरा दे देना-ये और ऐसे ही कई और काम यशोधर बाबू ने किशनदा से विरासत में लिए थे। उनकी पत्नी और बच्चों को इन आयोजनों पर होने वाला खर्च और इन आयोजनों में होने वाला शोर, दोनों ही सख्त नापसंद थे। बदतर यही कि इन आयोजनों के लिए समाज में भी कोई खास उत्साह रह नहीं गया है।

यशोधर जी चाहते हैं कि उन्हें समाज का सम्मानित बुजुर्ग माना जाए लेकिन जब समाज ही न हो तो यह पद उन्हें क्योंकर मिले? यशोधर जी कहते हैं कि बच्चे मेरा आदर करें और उसी तरह हर बात में मुझसे सलाह लें जिस तरह मैं किशनदा से लिया करता था। यशोधर बाबू डेमोक्रेट बाबू हैं और हरगिज़ यह दुराग्रह नहीं करना चाहते कि बच्चे उनके कहे को पत्थर की लकीर समझें। लेकिन यह भी क्या हुआ कि पूछा न ताछा, जिसके मन में जैसा आया करता रहा। ग्रांटेड तुम्हारी नॉलेज ज़्यादा होगी लेकिन एक्सपीरिएंस का कोई सबस्टीट्यूट ठहरा नहीं बेटा। मानो न मानो, झूठे मुँह से सही, एक बार पूछ तो लिया करो-ऐसा कहते हैं यशोधर बाबू और बच्चे यही उत्तर देते हैं, "बब्बा, आप तो हद करते हैं, जो बात आप जानते ही नहीं आपसे क्यों पूछें?"

प्रवचन सुनने के बाद यशोधर बाबू सब्जीमंडी गए। यशोधर बाबू को अच्छा लगता अगर उनके बेटे बड़े होने पर अपनी तरफ़ से यह प्रस्ताव करते कि दूध लाना, राशन लाना, सी. जी. एच. एस. डिस्पेंसरी से दवा लाना, सदर बाजार जाकर दालें लाना, पहाड़गंज से सब्जी लाना, डिपो से कोयला लाना ये सब काम आप छोड़ दें, अब हम कर दिया करेंगे, एकाध बार बेटों से खुद उन्होंने ही कहा तब वे एक-दूसरे से कहने लगे कि तू किया कर, तू क्यों नहीं करता? इतना कुहराम मचा और लड़कों ने एक-दूसरे को इतना ज्यादा बुरा-भला कहा कि यशोधर बाबू ने इस विषय को उठाना भी बंद कर दिया। जब से बेटा विज्ञापन कंपनी में बड़ी नौकरी पर गया है तब से बच्चों का इस प्रसंग में एक ही वक्तव्य है-"बब्बा, हमारी समझ में नहीं आता कि इन कामों के लिए आप एक नौकर क्यों नहीं रख लेते? ईजा को भी आराम हो जाएगा।" कमाऊ बेटा नमक छिड़कते हुए यह भी कहता है कि नौकर की तनख्वाह मैं दे दूँगा।

यशोधर बाबू को यही 'समहाउ इंप्रापर' मालूम होता है कि उनका बेटा अपना वेतन उनके हाथ में नहीं रखे। यह सही है कि वेतन स्वयं बेटे के अपने हाथ में नहीं आता, एकाउंट ट्रांसफर द्वारा बैंक में जाता है। लेकिन क्या बेटा बाप के साथ ज्वाइंट एकाउंट नहीं खोल सकता था? झूठे मुँह से ही सही, एक बार ऐसा कहता तो! तिस पर बेटे का अपने वेतन को अपना समझते हुए बार-बार कहना कि यह काम मैं अपने पैसे से करने को कह रहा हूँ, आपके से नहीं जो आप नुक्ताचीनी करें। इस क्रम में बेटे ने पिता का यह क्वार्टर तक अपना बना लिया है। अपना वेतन अपने ढंग से वह इस घर पर खर्च कर रहा है। कभी कारपेट बिछवा रहा है, कभी पर्दे लगवा रहा है। कभी सोफ़ा आ रहा है कभी डनलपवाला डबल बैड और सिंगार मेज। कभी टी. वी., कभी फ्रिज क्या हुआ यह? और ऐसा भी नहीं कहता कि लीजिए पिता जी मैं आपके लिए यह टी. वी. ले आया। कहता यही है कि मेरा टी. वी. है समझे, इसे कोई न छुआ करे! क्वार्टर ही उसका हो गया! यह अच्छी रही। अब इनका एक नौकर भी रखो घर में। इनका नौकर होगा तो इनके लिए ही होगा। हमारे लिए तो क्या होगा-ऐसा समझाते हैं यशोधर बाबू घरवाली को। काम सब अपने हाथ से ठीक ही होते हैं। नौकरों को सौंपा कारोबार चौपट हुआ। कहते हैं यशोधर बाबू, पत्नी सुनती है मगर नहीं सुनती। पर सुनकर अब चिढ़ती भी नहीं।

सब्जी का झोला लेकर यशोधर बाबू खुदी हुई सड़कों और टूटे हुए क्वार्टरों के मलबे से पटे हुए लानों को पार करके स्क्वायर के उस कोने में पहुँचे जिसमें तीन क्वार्टर अब भी साबुत खड़े हुए थे। उन तीन में से कुल एक को अब तक एक सिलसिला आबाद किए हुए है। बाहर बदरंग तख्ती में उसका नाम लिखा है-वाई.डी. पंत।

इस क्वार्टर के पास पहुँचकर आज वाई.डी. पंत को पहले धोखा हुआ कि किसी गलत जगह आ गए हैं। क्वार्टर के बाहर एक कार थी, कुछ स्कूटर-मोटर साइकिल, बहुत से लोग विदा ले-दे रहे थे। बाहर बरामदे में रंगीन कागज की झालरें और गुब्बारे लटके हुए थे और रंग-बिरंगी रोशनियाँ जली हुई थीं।

फिर उन्हें अपना बड़ा बेटा भूषण पहचान में आया जिससे कार में बैठा हुआ कोई साहब हाथ मिला रहा था और कह रहा था, "गिव माई वार्म रिगार्ड्स टू योर फ़ादर।"

यशोधर बाबू ठिठक गए। उन्होंने अपने से पूछा क्यों, आज मेरे क्वार्टर में यह क्या हो रहा होगा? उसका जवाब भी उन्होंने अपने को दिया जो करते होंगे यह लौंडे मौंडे, इनकी माया यही जानें।

अब यशोधर बाबू का ध्यान इस ओर गया कि उनकी पत्नी और उनकी बेटी भी कुछ मेमसाबों को विदा करते हुए बरामदे में खड़ी हैं, लड़की जीन और बगैर बाँह का टाप पहने है। यशोधर बाबू उससे कई मर्तबा कह चुके हैं कि तुम्हारी यह पतलून और सैंडो बनने वाली ड्रैस मुझे तो समहाउ इंप्रापर मालूम होती है। लेकिन वह भी जिद्दी ऐसी है कि इसे ही पहनती है और पत्नी भी उसी की तरफ़दारी करती है, कहती है-वह सिर पर पल्लू-वल्लू मैंने कर लिया बहुत तुम्हारे कहने पर समझे, मेरी बेटी वही करेगी जो दुनिया कर रही है। पुत्री का पक्ष लेने वाली यह पत्नी इस समय ओठों पर लाली और बालों पर खिजाब लगाए हुए थी जबकि ये दोनों ही चीजें आप कुछ भी कहिए, यशोधर बाबू को 'समहाउ इंप्रापर' ही मालूम होती हैं।

आधुनिक किस्म के अजनबी लोगों की भीड़ देखकर यशोधर बाबू अँधेरे में ही दुबके रहे। उनके बच्चों को इसलिए शिकायत है कि बब्बा तो एल.डी.सी. टाइपों से ही मिक्स करते हैं।

जब कार वाले लोग चले गए तब यशोधर बाबू ने अपने क्वार्टर में कदम रखने का साहस जुटाया। भीतर अब भी पार्टी चल रही थी। उनके पुत्र-पुत्रियों के कई मित्र तथा उनके कुछ रिश्तेदार जमे हुए थे। उनके बड़े बेटे ने झिड़की-सी सुनाई, "बब्बा, आप भी हद करते हैं। सिल्वर वैडिंग के दिन साढ़े आठ बजे घर पहुँचे हैं। अभी तक मेरे बॉस आपकी राह देख रहे थे।"

"हम लोगों के यहाँ सिल्वर वैडिंग कब से होने लगी है।" यशोधर बाबू ने शर्मीली हँसी हँस दी।

"जब से तुम्हारा बेटा डेढ़ हज़ार माहवार कमाने लगा, तब से।" यह टिप्पणी थी चंद्रदत्त तिवारी की जो इसी साल एस.ए.एस. पास हुआ है और दूर के रिश्ते से यशोधर बाबू का भांजा लगता है।

यशोधर बाबू को अपने बेटों से तमाम तरह की शिकायतें हैं लेकिन कुल मिलाकर उन्हें यह अच्छा लगता है कि लोग-बाग उन्हें ईर्ष्या का पात्र समझते हैं। भले ही उन्हें भूषण का गैर-सरकारी नौकरी करना समझ में न आता हो तथापि वह यह बखूबी समझते हैं कि इतनी छोटी उम्र में डेढ़ हजार माहवार प्लस कनवेएंस एलाउंस एंड तुम्हारा अदर पर्क्स पा जाना कोई मामूली बात नहीं है। इसी तरह भले ही यशोधर बाबू ने बेटों की खरीदी हुई हर नयी चीज़ के संदर्भ में यही टिप्पणी की हो कि ये क्या हुई, समहाउ मेरी तो समझ में आता नहीं, इसकी क्या जरूरत थी, तथापि उन्हें कहीं इस बात से थोड़ी खुशी भी होती है कि इस चीज़ के आ जाने से उन्हें नए दौर के, निश्चय ही गलत, मानकों के अनुसार बड़ा आदमी मान लिया जा रहा है। मिसाल के लिए जब बेटों ने गैस का चूल्हा जुटाया तब यशोधर बाबू ने उसका विरोध किया और आज भी वह यही कहते हैं कि इस पर बनी रोटी मुझे तो समहाउ रोटी जैसी लगती नहीं, तथापि वह जानते हैं, गैस न होने पर वह इस नगर में चपरासी श्रेणी के मान लिए जाते। इसी तरह फ्रिज के संदर्भ में आज भी यशोधर बाबू यही कहते हैं कि मेरी समझ में आज तक यह नहीं आया कि इसका फ़ायदा क्या है? बासी खाना खाना अच्छी आदत नहीं ठहरी। और यह ठहरा इसी काम का कि सुबह बना के रख दिया और शाम को खाया। इस में रखा हुआ पानी भी मेरे मन तो आता नहीं, गला पकड़ लेता है। कहते हैं मगर इस बात से संतुष्ट होते हैं कि घर आए साधारण हैसियत वाले मेहमान इस फ्रिज का पानी पीकर अपने को धन्य अनुभव करते हैं।

अपनी सिल्वर वैडिंग की यह भव्य पार्टी भी यशोधर बाबू को समहाउ इंप्रापर ही लगी तथापि उन्हें इस बात से संतोष हुआ कि जिस अनाथ यशोधर के जन्मदिन पर कभी लड्डू नहीं आए, जिसने अपना विवाह भी कोऑपरेटिव से दो-चार हज़ार कर्जा निकालकर किया बगैर किसी खास धूमधाम के, उसके विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ पर केक, चार तरह की मिठाई, चार तरह की नमकीन, फल, कोल्डड्रिंक्स, चाय सब कुछ मौजूद है।

गिरीश बोला, मुझे आज सुबह बैठे-बैठे याद आया कि आपकी शादी छह फ़रवरी सन् सैंतालीस को हुई थी और इस हिसाब से आज उसे पच्चीस साल पूरे हो गए हैं। मैंने आपके दफ्तर फ़ोन किया लेकिन शायद आपका फ़ोन खराब था। तब मैंने भूषण को फ़ोन किया। भूषण ने कहा, शाम को आ जाइए पार्टी करते हैं। मैं अपने बॉस को भी बुला लूँगा इसी बहाने।"

गिरीश यशोधर बाबू की पत्नी का चचेरा भाई है। बड़ी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर है और इसकी सहायता से ही यशोधर बाबू के बेटे को अपना यह संपन्न साला समहाउ भयंकर ओछाट यानी ओछेपन का धनी मालूम होता है। उन्हें लगता है कि इसी ने भूषण को बिगाड़ दिया है। कभी कहते हैं ऐसा तो पत्नी बरस पड़ती है-जिंदगी बना दी तुम्हारे सेकेंड क्लास बी.ए. बेटे की, कहते हो बिगाड़ दिया।

भूषण ने अपने मित्रों-सहयोगियों का यशोधर बाबू से परिचय कराना शुरू किया। उनकी "मैनी हैप्पी रिटन्र्स ऑफ़ द डे" का "थैंक्यू" कहकर जवाब देते हुए, जिन लोगों का नाम पहले बता दिया गया हो उनकी ओर "वाई.डी. पंत, होम मिनिस्टरी, भूषण्स फ़ादर" कहकर स्वयं हाथ बढ़ाते हुए यशोधर बाबू ने हरचंद यह जताने की कोशिश की कि भले ही वह संस्कारी कुमाऊँनी है तथापि विलायती रीति-रिवाज से भी भली भाँति परिचित हैं। किशनदा कहा करते थे कि आना सब कुछ चाहिए, सीखना हर एक की बात ठहरी, लेकिन अपनी छोड़नी नहीं हुई। टाई-सूट पहनना आना चाहिए लेकिन धोती-कुर्ता अपनी पोशाक है यह नहीं भूलना चाहिए।

अब बच्चों ने एक और विलायती परंपरा के लिए आ आग्रह किया-यशोधर बाबू अपनी पत्नी के साथ केक काटें। घरवाली पहले थोड़ा शरमाई लेकिन जब बेटी ने हाथ खींचा तब उसे केक के पीछे जा खड़ी होने में कोई हिचक नहीं हुई, वहीं से उसने पति को भी पुकारा।

यशोधर बाबू को केक काटना बचकानी बात मालूम हुई। बेटी उन्हें लगभग खींचकर ले गई। यशोधर बाबू ने कहा, "समहाउ आई डोंट लाइक आल दिस।" लेकिन एनीवे उन्होंने केक काट ही दिया। गिरीश ने उनकी यह अनमनी किंतु संतुष्ट छवि कैमरे में कैद कर ली। अब पति-पत्नी से कहा गया कि वे केक से मुँह मीठा करें एक-दूसरे का। पत्नी ने खा लिया मगर यशोधर बाबू ने इंकार कर दिया। उनका कहना था कि मैं केक खाता नहीं, इसमें अंडा पड़ा होता है। उन्हें याद दिलाया गया कि अभी कुछ वर्षों पहले तक आप मांसाहारी थे, एक टुकड़ा केक खा लेने में क्या हो जाएगा? लेकिन वह नहीं माने। तब उनसे अनुरोध किया गया कि लड्डू ही खा लें। भूषण के एक मित्र ने लड्डू उठाकर उनके मुँह में दूँसने का यत्न किया लेकिन यशोधर बाबू इसके लिए भी राजी नहीं हुए। उनका कहना था कि मैंने अब तक संध्या नहीं की है। इस पर भूषण ने झुंझलाकर कहा, "तो बब्बा, पहले जाकर संध्या कीजिए, आपकी वजह से हम लोग कब तक रुके रहेंगे।"

"नहीं, नहीं, आप सब लोग खाइए," यशोधर बाबू ने बच्चों के दोस्तों से कहा, "प्लीज़ गो अहेड। नो फ़ारमैल्टी।"

यशोधर बाबू ने आज पूजा में कुछ ज़्यादा ही देर लगाई। इतनी देर कि ज़्यादातर मेहमान उठ कर चले जाएँ।

उनकी पत्नी, उनके बच्चे, बारी-बारी से आकर झाँकते रहे और कहते रहे, जल्दी कीजिए मेहमान लोग जा रहे हैं।

शाम की पंद्रह मिनट की पूजा को लगभग पच्चीस मिनट तक खींच लेने के बाद भी जब बैठक से मेहमानों की आवाजें आती सुनाई दी तब यशोधर बाबू पद्मासन साधकर ध्यान लगाने बैठ गए, वह चाहते थे कि उन्हें प्रकाश का एक नीला बिंदु दिखाई दे, मगर उन्हें किशनदा दिखाई दे रहे थे।

यशोधर बाबू किशनदा से पूछ रहे थे कि 'जो हुआ होगा' से आप कैसे मर गए? किशनदा कह रहे थे कि भाऊ सभी जन इसी 'जो हुआ होगा' से मरते हैं, गृहस्थ हों, ब्रह्मचारी हों, अमीर हों, गरीब हों, मरते 'जो हुआ होगा' से ही हैं। हाँ हाँ, शुरू में और आखिर में, सब अकेले ही होते हैं। अपना कोई नहीं ठहरा दुनिया में, बस अपना नियम अपना हुआ।

यशोधर बाबू ने पाजामा-कुर्ते पर ऊनी ड्रेसिंग गाउन पहने, सिर पर गोल विलायती टोपी, पाँवों में देशी खड़ाऊँ और हाथ में डंडा धारण किए इस किशनदा से अकेलेपन के विषय में बहस करनी चाही। उनका विरोध करने के लिए नहीं बल्कि बात कुछ और अच्छी तरह समझने के लिए।

हर रविवार किशनदा शाम को ठीक चार बजे यशोधर बाबू के घर आया करते थे। उनके लिए गरमा-गरम चाय बनवाई जाती थी। उनका कहना था कि जिसे फूँक मारकर न पीना पड़े वह चाय कैसी। चाय सुड़कते हुए किशनदा प्रवचन करते थे और यशोधर बाबू बीच-बीच में शंकाएँ उठाते थे।

यशोधर बाबू को लगता है कि किशनदा आज भी मेरा मार्ग-दर्शन कर सकेंगे और बता सकेंगे कि मेरे बीवी-बच्चे जो कुछ भी कर रहे हैं उसके विषय में मेरा रवैया क्या होना चाहिए?

लेकिन किशनदा तो वही अकेलेपन का खटराग अलापने पर आमादा से मालूम होते हैं।

कैसी बीवी, कहाँ के बच्चे, यह सब माया ठहरी और यह जो भूषण आज इतना उछल रहा है वह भी किसी दिन इतना ही अकेला और असहाय अनुभव करेगा, जितना कि आज तू कर रहा है।

यशोधर बाबू बात आगे बढ़ाते लेकिन उनकी घरवाली उन्हें झिड़कते हुए आ पहुँची कि क्या आज पूजा में ही बैठे रहोगे। यशोधर बाबू आसन से उठे और उन्होंने दबे स्वर में पूछा, "मेहमान गए?" पत्नी ने बताया, "कुछ गए हैं, कुछ हैं। उन्होंने जानना चाहा कि कौन-कौन हैं? आश्वस्त होने पर कि सभी रिश्तेदार ही हैं वह उसी लाल गमछे में बैठक में चले गए जिसे पहनकर वह संध्या करने बैठे थे। यह गमछा पहनने की आदत भी उन्हें किशनदा से विरासत में मिली है और उनके बच्चे इसके सख्त खिलाफ़ हैं।

"एवरीबडी गॉन, पार्टी ओवर?" यशोधर बाबू ने मुसकुराकर ने मुसकुराकर अपनी बेटी से पूछा, "अब गोया गमछा पहने रखा जा सकता है?"

उनकी बेटी झल्लाई, "लोग चले गए, इसका मतलब यह थोड़ी है कि आप गमछा पहनकर बैठक में आ जाएँ। बब्बा, यू आर द लिमिट।"

"बेटी, हमें जिसमें सज आएगी वही करेंगे ना, तुम्हारी तरह जीन पहनकर हमें तो सज आती-नहीं।"

यशोधर बाबू की दृष्टि मेज़ पर रखे कुछ पैकेटों पर पड़ी। बोले, "ये कौन भूले जा रहा है?"

भूषण बोला, "आपके लिए प्रेजेंट हैं, खोलिए ना।"

"अह, इस उम्र में क्या हो रहा है प्रेजेंट-वरजैंट! तुम खोलो, तुम्हीं इस्तेमाल करो।" कहकर शर्मीली हँसी हँसे।

भूषण सबसे बड़ा पैकेट उठाकर उसे खोलते हुए बोला, "इसे तो ले लीजिए। यह मैं आपके लिए लाया हूँ। ऊनी ड्रेसिंग गाउन है। आप सवेरे जब दूध लेने जाते हैं बब्बा, फटा पुलोवर पहन के चले जाते हैं जो बहुत ही बुरा लगता है। आप इसे पहन के जाया कीजिए।"

बेटी पिता का पाजामा-कुर्ता उठा लाई कि इसे पहनकर गाउन पहनें। थोड़ा-सा ना-नुच करने के बाद यशोधर जी ने इस आग्रह की रक्षा की। गाउन का सैश कसते हुए उन्होंने कहा, "अच्छा तो यह ठहरा ड्रेसिंग गाउन।"

उन्होंने कहा और उनकी आँखों की कोर में जरा-सी नमी चमक गई।

यह कहना मुश्किल है कि इस घड़ी उन्हें यह बात चुभ गई कि उनका जो बेटा यह कह रहा है कि आप सवेरे ड्रेसिंग गाउन पहनकर दूध लाने जाया करें, वह यह नहीं कह रहा कि दूध मैं ला दिया करूँगा या कि इस गाउन को पहनकर उनके अंगो में वह किशनदा उतर आया है जिसकी मौत 'जो हुआ होगा' से हुई।

पाठ का सारांश -

'मनोहर श्याम जोशी' द्वारा रचित कहानी 'सिल्वर वैडिंग' एक लम्बी कहानी है जिसकी मूल संवेदना में दो पीढ़ियों के अन्तराल का मार्मिक चित्रण है।

यशोधर पंत के माता-पिता का देहान्त बचपन में ही हो जाने के कारण उनका पालन-पोषण उनकी बुआ ने किया था। उन्होंने रेम्जे स्कूल अल्मोड़ा से मैट्रिक की परीक्षा पास की और रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली आकर किशनदा के साथ रहने लगे। यही नहीं किशनदा ने अपने नीचे नौकरी दिलवायी तथा जीवन भर यशोधर पंत का मार्ग-दर्शन किया। आगे चलकर वे सेक्शन ऑफीसर बन गए। 'समहाउ इंप्रापर' उनका तकियाकलाम था। उनके तीन बेटे तथा एक बेटी थी। उनके बड़े बेटे की एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी लग गई थी। दूसरा बेटा दूसरी बार आई. ए. एस. की परीक्षा की तैयारी कर रहा था। तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका चला गया। उनकी एकमात्र बेटी विवाह के प्रस्ताव को अस्वीकार कर डॉक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए अमेरिका जाने की धमकी देती थी। यशोधर बाबू बच्चों की तरक्की से खुश हैं और 'समहाउ' अनुभव करते हैं कि वह खुशहाली कैसी जो अपनों में परायापन पैदा करती है लेकिन जेनरेशन गैप को स्वीकार कर अपने मन को दिलासा दे देते हैं' जो हुआ होगा।'

यशोधर पंत की शादी 6 फरवरी, 1947 को हुई और वर्णित कहानी में उनकी शादी की रजत जयन्ती का दिन था। अतः, कार्यालय में कार्यरत चड्‌ढा तथा मेनन उन्हें 'सिल्वर वैडिंग' की बधाई देते हुए उनसे नाश्ते-पानी के लिए तीस रुपये ले लेते हैं। परन्तु यशोधर पंत स्वयं इस दावत के लिए रुके नहीं, हँसी-मजाक करते हुए घर चले गए।

यशोधर बाबू दफ्तर से लौटते हुए रास्ते में बिड़ला मन्दिर गए, उसके उद्यान में बैठकर प्रवचन सुने फिर पहाड़गंज से साग-सब्जी लेते हुए आठ बजे घर पहुँचते हैं। रास्ते में वे एकं बनती हुई छः मंजिला इमारत के पास खड़े होकर सोचने लगे कभी यहाँ किशनदा का क्वार्टर था।

यशोधर पंत जब घर पहुँचे तो उन्होंने दरवाजे पर एक कार देखी। बड़ा बेटा कार में बैठे व्यक्ति को विदा कर रहा था। दूसरी ओर घर को गुब्बारों और रंगीन कागजों की झालरों से सजाया हुआ था। बरामदे में पत्नी व बेटी आधुनिक लिबास में सजी कुछ मेमों को विदा कर रहीं थीं। घर के अन्दर पहुँचने पर बड़े बेटे ने देर से आने का उलाहना दिया। अब केक काटने की तैयारी हो रही थी। बेटी के कहने पर पत्नी के साथ केक काटा व सबने खाया। यह 'सिल्वर वैडिंग' का कार्यक्रम उन्हें अच्छा लग रहा था परन्तु संस्कारवश अनिच्छा प्रकट करते हुए कहा 'समहाउ इंप्रापर' और पूजा के लिए चले गए, कुछ मेहमान बचे थे परन्तु अधिकतर जा चुके थे। बच्चों ने मेज पर रखे उपहार खोलने को कहा। यशोधर बाबू के न खोलने पर भूषण स्वयं खोलते हुए कहता है कि यह ऊनी ड्रेसिंग गाउन है, सुबह दूध लाने के समय इसे पहनना। बेटी पाजामा-कुर्ता उठा लाई और कहा इसे पहनकर गाउन पहनें। पंत जी ने कपड़े पहने और गाउन का सैश कसते हुए कहा, "अच्छा तो यह ठहरा ड्रेसिंग गाउन" और उनकी आँखों में जरा-सी नमी चमक गई। उन्होंने सोचा बेटे ने यह नहीं कहा - "दूध मैं ला दिया करूँगा।" उस गाउन को पहनकर उनके अंगों में किशनदा उतर आए जिनकी मौत 'जो हुआ होगा' से हुई। जिसका तात्पर्य था कि जो हुआ है उसे स्वीकार कर लो।

इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारा समाज एक ओर आधुनिकता की ओर आगे बढ़ रहा है तो दूसरी ओर मानवीय गुण घिसते चले जा रहे हैं। 'जो हुआ होगा' और 'समहाउ इंप्रापर' वाक्यांश इस कहानी के बीज वाक्य हैं। 'जो हुआ होगा' में ज्यों-का-त्यों स्वीकार करने का भाव है जबकि 'समहाउ इंप्रापर' में अनिर्णय का भाव है। ये दोनों भाव यशोधर बाबू के भीतर के द्वन्द्व हैं। एक ओर वे बच्चों की उन्नति से खुश हैं, वहीं 'समहाउ इंप्रापर' अनुभव करते हैं और सोचते हैं कि पत्नी और बच्चे उनसे ज्यादा समझदार हैं। पत्नी मातृसुलभ भावना के कारण बच्चों के साथ पूर्णरूप से आधुनिक (मॉड) बन गई है।

​​लेखक: मनोहर श्याम जोशी का संपूर्ण परिचय

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लेखक परिचय:
मनोहर श्याम जोशी हिंदी के एक प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक और टेलीविज़न धारावाहिकों के पटकथा लेखक थे। उनका जन्म सन् 1935 में कुमाऊँ में हुआ था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत पत्रकारिता से की, जहाँ उन्होंने 'दिनमान' पत्रिका में सहायक संपादक और 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' में संपादक के रूप में कार्य किया।

सन् 1984 में, उन्होंने भारतीय दूरदर्शन के पहले धारावाहिक 'हम लोग' के लिए कथा और पटकथा लिखकर एक नई क्रांति ला दी। इसके बाद उन्होंने 'बुनियाद' और 'मुंगेरी लाल के हसीन सपने' जैसे कई सफल धारावाहिकों का लेखन किया।

उनकी प्रमुख रचनाओं में उपन्यास 'कुरु कुरु स्वाहा', 'कसप', 'हरिया हरक्यूलीज़ की हैरानी' और 'क्याप' शामिल हैं। उन्हें उनके उपन्यास 'क्याप' के लिए 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनका निधन सन् 2006 में दिल्ली में हुआ। मनोहर श्याम जोशी को उनकी सरल, व्यंग्यात्मक और सहज लेखन शैली के लिए जाना जाता है।

अभ्यास

प्रश्न 1. यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर — यशोधर बाबू की पत्नी ने समय के साथ ढलना इसलिए स्वीकार कर लिया क्योंकि वह एक संयुक्त परिवार के कठोर नियमों में जीवन जी चुकी थीं। किशनदा और परिवार के बुजुर्गों के कारण उन्हें अपनी युवावस्था में भी परंपराओं और बंधनों का पालन करना पड़ा। अब जब बच्चे बड़े हो गए और उन्हें अपनी पसंद से जीने का मौका मिला, तो उन्होंने उन पुरानी बातों को छोड़ दिया। वह बच्चों के आधुनिक विचारों का समर्थन करके अपने दमित सपनों को जी रही थीं। इसके विपरीत, यशोधर बाबू किशनदा को अपना आदर्श मानते थे और उनके सिद्धांतों से चिपके रहना ही अपनी पहचान समझते थे। वे नए बदलावों को 'समहाउ इंप्रापर' मानकर उनसे दूरी बनाए रखते थे। उनकी सोच और व्यक्तित्व किशनदा की परंपराओं में इतना बँधा हुआ था कि वे उनसे बाहर नहीं निकल पाए।

प्रश्न 2. पाठ में 'जो हुआ होगा' वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते / सकती हैं?
उत्तर — 'जो हुआ होगा' वाक्यांश की तीन मुख्य अर्थ छवियाँ हैं:

  • किशनदा की मृत्यु का कारण: यह वाक्यांश किशनदा की मौत के रहस्य को दर्शाता है, जो न तो बीमारी थी और न ही कोई दुर्घटना, बल्कि अकेलेपन और उपेक्षा के कारण धीरे-धीरे मुरझाना था।
  • अनिर्णय की स्थिति: यह यशोधर बाबू की मानसिक स्थिति को दिखाता है जब वे किसी भी बात पर कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाते। यह एक प्रकार की अनिर्णय की स्थिति है, जहाँ वे न तो पूरी तरह से आधुनिक हो पाते हैं और न ही पुरानी बातों को पूरी तरह छोड़ पाते हैं।
  • यथार्थ की स्वीकृति: यशोधर बाबू इस वाक्यांश का प्रयोग तब करते हैं जब वे अपने बच्चों की मनमानी या बदलते समाज को बेबसी के साथ स्वीकार कर लेते हैं। वे स्थिति को बदलने की कोशिश नहीं करते, बल्कि उसे नियति मानकर छोड़ देते हैं।

प्रश्न 3. 'समहाउ इंप्रापर' वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रांरभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है?
उत्तर — 'समहाउ इंप्रापर' वाक्यांश यशोधर बाबू के द्वंद्वात्मक व्यक्तित्व को दर्शाता है। वे आधुनिकता को पूरी तरह से नकार नहीं पाते, लेकिन उसे स्वीकार भी नहीं कर पाते। यह वाक्यांश उनकी अनिर्णय की स्थिति और आधुनिक समाज के प्रति उनकी असहजता को प्रकट करता है। कहानी का कथ्य भी इसी पीढ़ी अंतराल पर आधारित है। यशोधर बाबू का यह तकिया कलाम यह बताता है कि वे अपने बच्चों द्वारा किए जा रहे हर बदलाव को सही नहीं मानते, लेकिन उनके पास इसका कोई तर्कपूर्ण विरोध भी नहीं है। यह वाक्यांश उनके भीतर चल रहे संघर्ष को सामने लाता है कि वे अपने आदर्श किशनदा के मूल्यों को छोड़ नहीं पाते, जबकि उनके चारों ओर का संसार तेजी से बदल रहा है।

प्रश्न 4. यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे?
उत्तर — यशोधर बाबू के जीवन को किशनदा ने दिशा दी, उसी तरह मेरे जीवन में मेरे माता-पिता का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने मुझे न केवल शिक्षा दी, बल्कि जीवन में ईमानदार और मेहनती बनने के संस्कार भी दिए। बचपन से ही उन्होंने मुझे समय का सदुपयोग करना, दूसरों का सम्मान करना और अपनी जिम्मेदारियों को समझना सिखाया। आज मैं जो कुछ भी हूँ, वह उनके दिए हुए नैतिक मूल्यों और सही मार्गदर्शन का ही परिणाम है। जिस तरह किशनदा ने यशोधर बाबू को नौकरी और जीवन जीने का तरीका सिखाया, उसी तरह मेरे माता-पिता ने मुझे जीवन में आने वाली हर चुनौती का सामना करने की प्रेरणा दी।

प्रश्न 5. वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं?
उत्तर — आजकल के परिवारों में भी पीढ़ी का अंतराल अक्सर देखा जाता है। मेरे अनुभव इस कहानी से काफी हद तक सामंजस्य बिठाते हैं। जहाँ माता-पिता पुरानी परंपराओं और सिद्धांतों को महत्त्व देते हैं, वहीं बच्चे पश्चिमी संस्कृति और आधुनिक जीवनशैली को अपनाना चाहते हैं। मेरे परिवार में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। माता-पिता जहाँ सादे जीवन के पक्षधर हैं, वहीं हम बच्चे सुविधाओं और आधुनिकता को प्राथमिकता देते हैं। उदाहरण के लिए, हमारे माता-पिता अभी भी रिश्तेदारों से मिलने-जुलने को महत्त्व देते हैं, जबकि हम ऑनलाइन माध्यमों को अधिक सुविधाजनक मानते हैं। यह स्थिति कहानी के यशोधर बाबू और उनके बच्चों के बीच के संघर्ष को दर्शाती है।

प्रश्न 6. निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे / कहेंगी और क्यों?
(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य
(ख) पीढ़ी का अंतराल
(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
उत्तर — मैं इस कहानी की मूल संवेदना (ख) पीढ़ी का अंतराल को कहूँगा। इसका मुख्य कारण यह है कि कहानी का पूरा कथानक इसी बिंदु पर केंद्रित है। यशोधर बाबू की पुरानी सोच और उनके बच्चों की आधुनिक सोच के बीच का टकराव ही कहानी की रीढ़ है। यशोधर बाबू किशनदा के मूल्यों से चिपके रहना चाहते हैं, जबकि उनके बच्चे पश्चिमी संस्कृति और नए तरीकों को अपनाते हैं। यह केवल दो अलग-अलग पीढ़ियों के जीवन मूल्यों का ही नहीं, बल्कि उनके बीच के संवादहीनता का भी चित्रण है। कहानी में हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी दिखाया गया है, लेकिन ये दोनों ही मुद्दे 'पीढ़ी के अंतराल' के कारण उत्पन्न होते हैं। इसलिए, यह कहना उचित होगा कि 'पीढ़ी का अंतराल' ही इस कहानी की मूल संवेदना है।

प्रश्न 7. अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
उत्तर — मेरे घर के पास आजकल कई बदलाव हो रहे हैं जो मेरे बुजुर्गों को पसंद नहीं आते:

  • ऑनलाइन शॉपिंग और डिजिटल पेमेंट: यह सुविधाजनक है, लेकिन मेरे दादा-दादी को इसमें लेन-देन का सीधा अनुभव नहीं मिलता। उन्हें लगता है कि इससे पैसों पर उनका नियंत्रण खत्म हो रहा है।
  • फैशन में बदलाव: नए ज़माने के कपड़े जैसे फटी हुई जींस या बिना आस्तीन वाले टॉप उन्हें मर्यादा और संस्कारों के विरुद्ध लगते हैं।
  • इमारतों का निर्माण: पुराने घरों को तोड़कर ऊँची-ऊँची इमारतें बनाई जा रही हैं। मेरे दादाजी को लगता है कि इससे शहर की पुरानी पहचान खत्म हो रही है और खुली जगह कम हो रही है।
इन बदलावों के पीछे मुख्य कारण यह है कि बुजुर्गों को लगता है कि ये चीजें उनकी परंपराओं और मूल्यों को खत्म कर रही हैं। वे पुरानी चीजों में एक तरह की आत्मीयता और सुरक्षा महसूस करते हैं, जो आधुनिकता में नहीं है।

प्रश्न 8. यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए-
(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं हैं।
(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।
(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है और नयी पीढ़ी द्वारा उनके विचारों का अपनाना ही उचित है।
उत्तर — मैं कथन (ख) यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है का समर्थन करता हूँ।

इसके समर्थन में मेरे तर्क इस प्रकार हैं:

  • मानसिक द्वंद्व: यशोधर बाबू पूरी तरह से पुराने विचारों वाले व्यक्ति नहीं हैं। उन्हें अपने बेटे की नौकरी से खुशी भी होती है और अपने घर में मेहमानों के लिए फ्रिज का पानी पीने से संतुष्टि भी। यह दिखाता है कि वे नए दौर की कुछ चीजों को स्वीकार करते हैं। लेकिन वे किशनदा के सिद्धांतों को भी छोड़ नहीं पाते। यह द्वंद्व उन्हें न तो पूरी तरह से आधुनिक बनने देता है और न ही पूरी तरह से पारंपरिक रहने देता है।
  • किशनदा का प्रभाव: उनका व्यक्तित्व जानबूझकर नहीं, बल्कि किशनदा के प्रभाव के कारण ऐसा बना है। वे किशनदा की मृत्यु के बाद भी उनके सिद्धांतों को जिंदा रखना चाहते हैं, जो एक तरह की वफादारी है।
  • अकेलापन और असुरक्षा: यशोधर बाबू को अपने बच्चों के साथ भावनात्मक दूरी महसूस होती है। उन्हें लगता है कि वे अपनी दुनिया में अकेले रह गए हैं। उनका 'समहाउ इंप्रापर' कहना उनकी इसी असुरक्षा को दर्शाता है। वे सहानुभूति के पात्र इसलिए हैं क्योंकि वे जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे, बल्कि एक पीढ़ीगत बदलाव के बीच फँसे हुए हैं।

प्रश्न 1. यशोधर बाबू दफ्तर से घर लौटते समय किस मंदिर जाते थे?
(A) सिद्धिविनायक मंदिर
(B) बिड़ला मंदिर
(C) कालकाजी मंदिर
(D) अक्षरधाम मंदिर
उत्तर: (B) बिड़ला मंदिर

प्रश्न 2. यशोधर बाबू की घड़ी में जब 5:30 बज रहे थे, तब दफ्तर की दीवार घड़ी में कितना समय हुआ था?
(A) 5:20
(B) 5:25
(C) 5:30
(D) 5:35
उत्तर: (B) 5:25

प्रश्न 3. 'समहाउ इंप्रापर' यह तकियाकलाम किसका था?
(A) किशनदा
(B) चड्डा
(C) यशोधर बाबू
(D) भूषण
उत्तर: (C) यशोधर बाबू

प्रश्न 4. यशोधर बाबू के आदर्श कौन थे?
(A) उनके पिता
(B) उनके बड़े भाई
(C) किशनदा
(D) उनके बॉस
उत्तर: (C) किशनदा

प्रश्न 5. यशोधर बाबू की शादी किस तारीख को हुई थी?
(A) 6 फरवरी 1946
(B) 6 फरवरी 1947
(C) 15 अगस्त 1947
(D) 26 जनवरी 1950
उत्तर: (B) 6 फरवरी 1947

प्रश्न 6. यशोधर बाबू के कितने बेटे और कितनी बेटियां थीं?
(A) दो बेटे और दो बेटियां
(B) तीन बेटे और एक बेटी
(C) एक बेटा और तीन बेटियां
(D) दो बेटे और एक बेटी
उत्तर: (B) तीन बेटे और एक बेटी

प्रश्न 7. यशोधर बाबू का बड़ा बेटा किस संस्था में काम करता था?
(A) सरकारी बैंक में
(B) एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में
(C) भारतीय सेना में
(D) एक आईटी कंपनी में
उत्तर: (B) एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में

प्रश्न 8. किशनदा की मृत्यु किस कारण से हुई?
(A) कैंसर
(B) हृदय रोग
(C) 'जो हुआ होगा'
(D) दुर्घटना
उत्तर: (C) 'जो हुआ होगा'

प्रश्न 9. यशोधर बाबू अपनी साइकिल क्यों नहीं चलाते थे?
(A) वह पुरानी हो गई थी
(B) उनके बच्चे उसे पसंद नहीं करते थे
(C) वह खराब हो गई थी
(D) उन्हें पैदल चलना पसंद था
उत्तर: (B) उनके बच्चे उसे पसंद नहीं करते थे

प्रश्न 10. यशोधर बाबू के अनुसार, आदमी को 'गधा-पचीसी' में क्या नहीं करना चाहिए?
(A) पढ़ाई-लिखाई
(B) काम-धंधा
(C) जिम्मेदारी लेना
(D) कोई चिंता नहीं करनी चाहिए
उत्तर: (D) कोई चिंता नहीं करनी चाहिए

प्रश्न 11. यशोधर बाबू अपनी सिल्वर वेडिंग की दावत के लिए क्यों नहीं रुके?
(A) उन्हें घर जल्दी जाना था
(B) यह किशनदा की परंपरा के विरुद्ध था
(C) उन्हें पार्टी पसंद नहीं थी
(D) उन्हें बच्चों पर गुस्सा आ रहा था
उत्तर: (B) यह किशनदा की परंपरा के विरुद्ध था

प्रश्न 12. किशनदा ने यशोधर बाबू को कितने रुपये उधार दिए थे?
(A) चालीस रुपये
(B) पचास रुपये
(C) साठ रुपये
(D) सौ रुपये
उत्तर: (B) पचास रुपये

प्रश्न 13. यशोधर बाबू को 'जो हुआ होगा' और 'समहाउ इंप्रापर' के बीच किस तरह का द्वंद्व महसूस होता था?
(A) आर्थिक
(B) भावनात्मक
(C) धार्मिक
(D) आध्यात्मिक
उत्तर: (B) भावनात्मक

प्रश्न 14. यशोधर बाबू के बच्चों के अनुसार, साइकिल कौन चलाते हैं?
(A) शिक्षक
(B) चपरासी
(C) भिखारी
(D) सरकारी कर्मचारी
उत्तर: (B) चपरासी

प्रश्न 15. यशोधर बाबू को रिटायर होने के बाद कहाँ जाने का विचार था?
(A) अपने गाँव
(B) किसी नए शहर में
(C) तीर्थयात्रा पर
(D) विदेश
उत्तर: (A) अपने गाँव

प्रश्न 16. यशोधर बाबू को अपनी पत्नी का क्या पहनना 'समहाउ इंप्रापर' लगता था?
(A) साड़ी
(B) सलवार सूट
(C) बगैर बाँह का ब्लाउज
(D) जींस और टॉप
उत्तर: (C) बगैर बाँह का ब्लाउज

प्रश्न 17. यशोधर बाबू ने बच्चों के दोस्तों के सामने किस तरह के कपड़े पहने थे?
(A) टाई-सूट
(B) धोती-कुर्ता
(C) पाजामा-कुर्ता और ऊनी गाउन
(D) जींस और टी-शर्ट
उत्तर: (C) पाजामा-कुर्ता और ऊनी गाउन

प्रश्न 18. यशोधर बाबू ने केक खाने से क्यों मना किया?
(A) वह मिठाई नहीं खाते थे
(B) वह बीमार थे
(C) इसमें अंडा पड़ा होता है
(D) उन्होंने संध्या पूजा नहीं की थी
उत्तर: (C) इसमें अंडा पड़ा होता है

प्रश्न 19. यशोधर बाबू की बेटी ने क्या पहन रखा था जिसे वे 'इंप्रापर' मानते थे?
(A) साड़ी
(B) सूट
(C) जींस और बिना बाँह का टॉप
(D) लहंगा
उत्तर: (C) जींस और बिना बाँह का टॉप

प्रश्न 20. यशोधर बाबू की पत्नी ने भूषण से क्या कहा जब यशोधर बाबू ने गिरीश को बिगाड़ दिया कहा?
(A) जिंदगी बना दी तुम्हारे सेकेंड क्लास बी.ए. बेटे की, कहते हो बिगाड़ दिया।
(B) तुम ठीक कह रहे हो।
(C) नहीं, वह मेरा भाई है।
(D) यह सब तुम्हारे ही कारण हो रहा है।
उत्तर: (A) जिंदगी बना दी तुम्हारे सेकेंड क्लास बी.ए. बेटे की, कहते हो बिगाड़ दिया।

प्रश्न 21. यशोधर बाबू को गैस के चूल्हे पर बनी रोटी कैसी लगती थी?
(A) स्वादिष्ट
(B) जली हुई
(C) रोटी जैसी नहीं
(D) बहुत अच्छी
उत्तर: (C) रोटी जैसी नहीं

प्रश्न 22. यशोधर बाबू को किशनदा की कौन-सी छवि हमेशा याद रहती थी?
(A) दफ्तर में काम करते हुए
(B) सुबह की सैर पर निकले हुए
(C) घर में बैठे हुए
(D) प्रवचन देते हुए
उत्तर: (B) सुबह की सैर पर निकले हुए

प्रश्न 23. यशोधर बाबू ने अपने बच्चों को क्या कहकर समझाया जब वे गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा करते थे?
(A) तुम गलत कर रहे हो।
(B) यह अच्छी बात नहीं है।
(C) एनीवे - जेनरेशनों में गैप तो होता ही है सुना।
(D) तुम अपनी दादी की तरह हो।
उत्तर: (C) एनीवे - जेनरेशनों में गैप तो होता ही है सुना।

प्रश्न 24. यशोधर बाबू को अपने लिए लाए गए ऊनी ड्रेसिंग गाउन को देखकर क्या महसूस हुआ?
(A) खुशी
(B) गुस्सा
(C) आँखों में नमी
(D) गर्व
उत्तर: (C) आँखों में नमी

प्रश्न 25. लेखक के अनुसार, 'सिल्वर वेडिंग' कहानी की मूल संवेदना क्या है?
(A) समाज में बढ़ती आधुनिकता
(B) दो पीढ़ियों के बीच का अंतर
(C) पारिवारिक संबंधों का टूटना
(D) सरकारी नौकरी का महत्व
उत्तर: (B) दो पीढ़ियों के बीच का अंतर

​लेखक मनोहर श्याम जोशी: प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 26. मनोहर श्याम जोशी का जन्म किस वर्ष हुआ था?
(A) 1930
(B) 1935
(C) 1940
(D) 1945
उत्तर: (B) 1935

प्रश्न 27. मनोहर श्याम जोशी का जन्म कहाँ हुआ था?
(A) कुमाऊँ
(B) दिल्ली
(C) लखनऊ
(D) मुंबई
उत्तर: (A) कुमाऊँ

प्रश्न 28. मनोहर श्याम जोशी ने किस विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी?
(A) दिल्ली विश्वविद्यालय
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय
(C) मुंबई विश्वविद्यालय
(D) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
उत्तर: (B) लखनऊ विश्वविद्यालय

प्रश्न 29. मनोहर श्याम जोशी ने किस पत्रिका में सहायक संपादक के रूप में कार्य किया?
(A) धर्मयुग
(B) दिनमान
(C) सारिका
(D) हंस
उत्तर: (B) दिनमान

प्रश्न 30. मनोहर श्याम जोशी ने किस पत्रिका में संपादक के रूप में कार्य किया?
(A) साप्ताहिक हिंदुस्तान
(B) इंडिया टुडे
(C) आउटलुक
(D) द वीक
उत्तर: (A) साप्ताहिक हिंदुस्तान

प्रश्न 31. भारतीय दूरदर्शन का पहला धारावाहिक 'हम लोग' किसने लिखा था?
(A) रमेश सिप्पी
(B) मनोहर श्याम जोशी
(C) गुलजार
(D) श्याम बेनेगल
उत्तर: (B) मनोहर श्याम जोशी

प्रश्न 32. 'हम लोग' धारावाहिक का प्रसारण किस वर्ष शुरू हुआ था?
(A) 1980
(B) 1984
(C) 1988
(D) 1990
उत्तर: (B) 1984

प्रश्न 33. मनोहर श्याम जोशी का कौन-सा उपन्यास 'क्याप' शीर्षक से है?
(A) कुरू कुरू स्वाहा
(B) हरिया हरक्यूलीज़ की हैरानी
(C) क्याप
(D) कसप
उत्तर: (C) क्याप

प्रश्न 34. मनोहर श्याम जोशी को उनके किस उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था?
(A) कसप
(B) कुरु कुरु स्वाहा
(C) हरिया हरक्यूलीज़ की हैरानी
(D) क्याप
उत्तर: (D) क्याप

प्रश्न 35. मनोहर श्याम जोशी को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस वर्ष मिला था?
(A) 2000
(B) 2002
(C) 2005
(D) 2006
उत्तर: (C) 2005

प्रश्न 36. मनोहर श्याम जोशी के किस धारावाहिक का नायक स्वप्नदर्शी था?
(A) हम लोग
(B) बुनियाद
(C) मुंगेरी लाल के हसीन सपने
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (C) मुंगेरी लाल के हसीन सपने

प्रश्न 37. मनोहर श्याम जोशी का निधन किस वर्ष हुआ?
(A) 2005
(B) 2006
(C) 2007
(D) 2008
उत्तर: (B) 2006

प्रश्न 38. मनोहर श्याम जोशी ने किस धारावाहिक में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद की कहानी को दिखाया है?
(A) हम लोग
(B) बुनियाद
(C) मुंगेरी लाल के हसीन सपने
(D) ककड़ी चुराना
उत्तर: (B) बुनियाद

प्रश्न 39. मनोहर श्याम जोशी का व्यंग्य-संग्रह कौन सा है?
(A) कुरु कुरु स्वाहा
(B) क्याप
(C) ट-टा प्रोफेसर षष्ठी वल्लभ पंत
(D) लखनऊ मेरा लखनऊ
उत्तर: (C) ट-टा प्रोफेसर षष्ठी वल्लभ पंत

प्रश्न 40. 'सिल्वर वेडिंग' कहानी किस संग्रह में संकलित है?
(A) वितान भाग 2
(B) गद्य खंड
(C) कुरु कुरु स्वाहा
(D) पाठ्यपुस्तक में
उत्तर: (A) वितान भाग 2

प्रश्न 41. 'कसप' उपन्यास के लेखक कौन हैं?
(A) राजेंद्र यादव
(B) मोहन राकेश
(C) मनोहर श्याम जोशी
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर: (C) मनोहर श्याम जोशी

प्रश्न 42. 'हरिया हरक्यूलीज़ की हैरानी' किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) कहानी संग्रह
(C) व्यंग्य
(D) नाटक
उत्तर: (A) उपन्यास

प्रश्न 43. 'इक्कीसवीं सदी' मनोहर श्याम जोशी द्वारा लिखित किस प्रकार का संग्रह है?
(A) कहानी
(B) व्यंग्य
(C) साक्षात्कार-लेख
(D) संस्मरण
उत्तर: (C) साक्षात्कार-लेख

प्रश्न 44. मनोहर श्याम जोशी के लेखन की क्या विशेषता है?
(A) जटिल भाषा
(B) सरल और सहज भाषा
(C) लोकभाषा का प्रयोग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 45. यशोधर बाबू की कहानी में प्रयुक्त 'जो हुआ होगा' और 'समहाउ इंप्रापर' वाक्यांश लेखक की किस लेखन शैली को दर्शाते हैं?
(A) यथार्थवादी
(B) व्यंग्यात्मक
(C) द्वंद्वात्मक
(D) रोमांटिक
उत्तर: (C) द्वंद्वात्मक

प्रश्न 46. 'मंदिर घाट की पौड़ियाँ' किस लेखक की रचना है?
(A) मोहन राकेश
(B) मनोहर श्याम जोशी
(C) प्रेमचंद
(D) राजेंद्र यादव
उत्तर: (B) मनोहर श्याम जोशी

प्रश्न 47. मनोहर श्याम जोशी ने पत्रकारिता के अलावा और किस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया?
(A) फिल्म निर्देशन
(B) संगीत
(C) टेलीविजन धारावाहिक लेखन
(D) कविता लेखन
उत्तर: (C) टेलीविजन धारावाहिक लेखन

प्रश्न 48. 'हमजाद' उपन्यास के लेखक कौन हैं?
(A) अज्ञेय
(B) मनोहर श्याम जोशी
(C) कृष्णा सोबती
(D) उषा प्रियंवदा
उत्तर: (B) मनोहर श्याम जोशी

प्रश्न 49. मनोहर श्याम जोशी की शैली में किस प्रकार का व्यंग्य पाया जाता है?
(A) तीखा और कठोर
(B) हल्का-फुल्का और मनोरंजक
(C) आत्मव्यंग्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (B) हल्का-फुल्का और मनोरंजक

प्रश्न 50. मनोहर श्याम जोशी का दिल्ली में निधन हुआ, उस समय उनकी उम्र क्या थी?
(A) 70 वर्ष
(B) 71 वर्ष
(C) 72 वर्ष
(D) 73 वर्ष
उत्तर: (B) 71 वर्ष